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केदारनाथ जहां आज भी इन्द्र नित्य शिवपूजन के लिए आते हैं
इन्द्र ने कहा—‘भगवन् ! मैं प्रतिदिन स्वर्ग से यहां आकर आपकी पूजा करुंगा और इस कुण्ड का जल भी पीऊंगा । आपने महिष के रूप में यहां आकर ‘के दारयामि’ कहा है, इसलिए आप केदार नाम से प्रसिद्ध होंगे ।’
देवाधिदेव भगवान शिव और जगदम्बा पार्वती का विवाहोत्सव
पर्वतराज हिमालय ने सब प्रकार की लौकिक-वैदिक विधियों को सम्पन्न करके हाथ में जल और कुश लेकर कन्यादान का संकल्प किया। पर्वतराज हिमालय ने हंसकर शिवजी से कहा--’शम्भो! आप अपने गोत्र का परिचय दें। प्रवर, कुल, नाम, वेद और शाखा का प्रतिपादन करें।’ नाम पूछे जाने पर वर का नाम ‘शिव’ बताया गया, पर इनके पिता का नाम पूछने पर सब चुप हो गए। कुछ समय सोचने के बाद ब्रह्माजी ने कहा कि इनका पिता मैं ‘ब्रह्मा’ हूँ और पितामह का नाम पूछने पर ब्रह्माजी ने ‘विष्णु’ बताया। इसके बाद प्रपितामह का नाम पूछने पर सारी सभा अत्यन्त मौन रही। अंत में मौन भंग करते हुए शिवजी स्वयं बोले कि सबके प्रपितामह तो हम ही हैं।