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युगलस्वरूप श्रीराधाकृष्ण की कृपा की प्राप्ति कैसे हो ?
गोपी-प्रेम बड़ा ही पवित्र है, इसमें अपना सर्वस्व प्रियतम श्रीकृष्ण के चरणों में न्यौछावर करना पड़ता है । गोपी भाव के साधक को न तो मोक्ष की इच्छा होती है और न ही नरक का भय । उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य प्रियतम श्रीकृष्ण को प्रिय लगने वाले कार्य करना हो जाता है ।