चौंक गये ना आप! भला, पान और दरिद्रता में क्या सम्बन्ध है? सम्बन्ध है, गलत समय पर और गलत तरीके से पान खाने से, और पान में तम्बाकू (सूर्ती) डालकर खाने से घर में दरिद्रता का वास हो जाता है। इस सम्बन्ध में स्कन्दपुराण में बहुत ही सुन्दर कथा दी गयी है।
समुद्र-मंथन से निकले अमृत-कलश से हुई पान की उत्पत्ति
प्राचीन समय की बात है। देवताओं और दानवों ने मन्दराचल को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी बनाकर जब समुद्र-मंथन किया तो उसमें से कामधेनु, पारिजात वृक्ष, चन्द्रमा, लक्ष्मी आदि चौदह रत्न निकले। उनमें से एक अमृतकलश भी था जिसे वैद्यराज धन्वन्तरि अपने हाथ में लेकर प्रकट हुए थे। देवताओं ने समुद्र-मंथन से प्राप्त अमृतकलश को नन्दनवन में रखा। उसी अमृतकलश के पास समुद्र-मंथन से निकले ऐरावत हाथी को बांधने के लिए खम्भा लगाया गया था। खम्भे से बंधा हुआ नागराज ऐरावत (संस्कृत में नाग का अर्थ हाथी है) उस अमृत की दिव्य सुगन्ध लेता रहता था।
एक दिन उस अमृत-कलश से एक लता (creeper) प्रकट हुई और वह फैलती हुई नागराज ऐरावत के बांधने के खम्भे (आलान) पर चढ़ गयी। उस लता में से अद्भुत सुगन्ध आ रही थी। सभी देवतागण उस अद्भुत लता के पत्तों को तोड़कर मुखशुद्धि के लिए खाते थे, और खाकर उसके अद्भुत स्वाद से बहुत प्रसन्न होते थे।
पान का ‘नागवल्ली’ नाम पड़ने का कारण
देवताओं को उस लता के पत्तों को खाते देखकर वैद्य धन्वन्तरिजी ने कहा–‘यह लता नाग (हाथी) के आलान (बांधने के खम्भे) पर फैली है, इसलिए ‘नागवल्ली’ के नाम से प्रसिद्ध होगी और मेरे वचन से यह सदा कामदेव का स्थान (उद्दीपन करने वाली) होगी।’
संस्कृत में हाथी को ‘नाग’ कहते हैं और ‘वल्ली’ का अर्थ होता है लता या बेल। इसलिए पान को ‘नागवल्ली’ कहते हैं। पान को संस्कृत में ताम्बूल भी कहते हैं।
वैद्य धन्वन्तरिजी ने पान के साथ सुपारी, चूना और कत्थे को लगाकर इन्द्रदेव को दिया, जिसे खाकर इन्द्रदेव बहुत तृप्त हुए और प्रसन्न होकर उन्होंने धन्वतरिजी से वर मांगने को कहा। तब धन्वन्तरिजी ने कहा–’यह नागवल्ली मुझे भी दें। मैं पृथ्वीलोक में इसका प्रचार करुंगा।’
इन्द्रदेव ने वह नागवल्ली (पान की बेल) उन्हें दे दी और उसे पृथ्वी पर एक उद्यान में लगा दिया गया। शीघ्र ही पृथ्वी पर उसका सब ओर प्रचार हो गया। चूंकि धन्वन्तरिजी ने पान में कामदेव को वास दिया था, इससे पान खा-खाकर पृथ्वी पर मनुष्य काम-भोग में आसक्त हो गए। भोग-विलास में रत रहने के कारण न तो वे यज्ञ करते और न ही कोई सत्कर्म करते थे। पृथ्वी पर पूजा-पाठ आदि धार्मिक क्रियाएं लगभग गायब-सी हो गयीं। इससे देवताओं को यज्ञभाग मिलना बंद हो गया और वे भूख से पीड़ित होकर ब्रह्माजी के पास जाकर बोले–
‘पितामह! मृत्युलोक में सारे धार्मिक कार्य बंद हो गए हैं। सारा जगत ताम्बूल खाकर कामासक्त होता जा रहा है। अत: हम लोगों पर कृपा करें जिससे यज्ञ आदि होते रहें और हमें यज्ञभाग मिलता रहे।’
तब ब्रह्माजी पृथ्वी पर पुष्करतीर्थ में आए। वहां उनकी भेंट दारिद्रय से हुई। दारिद्रय ने ब्रह्माजी से कहा–’देव! मैं ब्राह्मणों के घर में रहकर उपवास करते-करते थक गया हूँ, अब कोई धनवानों का अच्छा-सा घर मेरे रहने के लिए बताइए, जहां मुझे खूब भरपेट भोजन मिले और मैं सदा तृप्त रहूँ।’
(ब्राह्मणों के घर दरिद्रता का वास इसलिए बताया गया है क्योंकि भृगुऋषि ने भगवान विष्णु की छाती पर लात मारी थी जहां लक्ष्मीजी का निवास है। इसी से रुष्ट होकर लक्ष्मीजी ने ब्राह्मणों को दरिद्रता का शाप दिया है।)
ब्रह्माजी ने पान और तम्बाकू में दारिद्रय को दिया रहने के लिए स्थान
ब्रह्माजी बहुत देर तक सोचते रहे। फिर उन्होंने दारिद्रय से कहा–‘तुम सुर्ती (चूर्णपत्र, तम्बाकू) में सदा निवास करो। पान के पत्ते के आगे के भाग में तुम पत्नी के साथ रहो तथा तने (वृन्त) में पुत्र के साथ निवास करो। रात होने पर तुम तीनों कत्थे में निवास करना।’
पान में चार प्रकार से होता है दरिद्रता का वास
इस प्रकार चंचला लक्ष्मी को कामासक्त धनवानों के घर से निकलने के लिए ब्रह्माजी ने ये चार स्थान दिए हैं–
१. सुर्ती,
२. पान का आगे का भाग,
३. पान का तने वाला भाग और
४. रात के समय कत्थे में।
यही कारण है कि पनबाड़ी (पान बेचने वाले) अपने यहां पान के आगे व पीछे का हिस्सा काटकर रखते हैं।
कैसे करें पान का प्रयोग
पान को कैसे व कब खाएं कि घर में न हो दरिद्रता का वास—
१. पान में सुर्ती (तम्बाकू, चूना और तम्बाकू मिलाकर) तो कभी डालें ही नहीं क्योंकि उसमें सदा दरिद्रता का वास है। प्राय: देखा जाता है कि गरीब लोग ही अधिक सुर्ती खाते हैं।
२. रात में भी कभी पान न खाएं क्योंकि कत्थे में उस समय दरिद्रता का वास होता है।
३. पान के पत्ते का आगे का भाग और डंठल तोड़कर केवल दिन में बिना सुर्ती का पान खाने में कोई दोष नहीं है।
सनातन हिन्दूधर्म में भगवान के षोडशोपचार पूजन में देवताओं को ताम्बूल अर्पित किया जाता है। ताम्बूल अर्पित करते समय यह मन्त्र बोला जाता है–
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलालवंगसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
भगवान को इलायची, लोंग व सुपारी के साथ पान समर्पित किया जाता है। अत: पान और सुर्ती (तम्बाकू) न खाना ही श्रेष्ठ है। फिर भी यदि पान खाये बिना नहीं रह सकते तो इन दोषों से बचकर ही पान खाएं। आजकल डॉक्टर्स भी पान, तम्बाकू आदि न खाने की सलाह देते हैं जो कि गंभीर बीमारियों की जड़ हैं और बीमारी आने से लक्ष्मी की हानि तो होती ही है।