भगवान श्रीराम का शब्दावतार ‘श्रीरामचरितमानस’
गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान शंकर, मारुतिनंदन हनुमान, पराम्बा पार्वतीजी, परब्रह्म भगवान श्रीराम और शेषावतार लक्ष्मणजी ने समय-समय पर अपना दर्शन देकर श्रीरामचरितमानस उनसे लिखवाया और भगवान श्रीराम ने ‘शब्दावतार’ के रूप में श्रीरामचरितमानस में प्रवेश किया ।
क्या आपको स्वप्न में साँप दिखायी देते हैं?
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।
अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम
हनुमानजी के अष्टोत्तरशतनाम आज के भौतिक युग में मनुष्य के कमजोर होते हुए विश्वास को पुर्नजीवित करने में संजीवनी बूटी का काम करेंगे और विभिन्न संतापों से अशान्त मन को शान्त करने में सहायक होंगे।
राम हैं वैद्य और राम-नाम है रामबाण औषधि
त्रेता में केवल एक रावण था, लेकिन कलियुग में अनगिनत बीमारियां रूपी रावण हैं । उन रावणों पर विजय पाने के लिए राम की शक्ति की आवश्यकता है और वह शक्ति ‘रामनाम’ में निहित है क्योंकि त्रेता में स्वधामगमन से पहले श्रीराम ने अपनी सारी शक्तियां अपने नाम में संन्निहित कर दी थीं ।
मनुष्य का सच्चा साथी कौन है?
नाशवान संसार में केवल धर्म ही अचल है और मनुष्य का सच्चा साथी है।
दीवाली पूजन में कुबेर पूजा क्यों?
नवनिधियों के स्वामी कुबेर
राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष (treasurer) हैं। संसार के गुप्त या...
श्रीराम के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की मदारी-वानर लीला
बालक श्रीराम, मदारी शंकर और वानररूप हनुमान
श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप
वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।
श्रीराम की सेवा के लिए शंकरजी ने लिया हनुमान का अवतार
हनुमन्नाटक के एक प्रसंग में रावण मन-ही-मन यह सोचता है कि मेरे दसों सिरों को चढ़ाने से शिवजी तो प्रसन्न हो गए, परन्तु एकादश रुद्र को मैं संतुष्ट न कर सका (हनुमानजी ग्यारहवें रुद्र के अंश माने जाते हैं); क्योंकि मेरे पास ग्यारहवां सिर था ही नहीं। इसी कारण शिवकोप से ही मेरी लंका का दहन हुआ। मैंने शिव और रुद्र में भेद किया, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने ऐसा किया।