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सीता जी की खोज में प्रभु श्रीराम की रुदन लीला

अनन्त ब्रह्माण्डों के स्वामी श्रीराम सीता जी को खोजते हुए इस प्रकार विलाप करते हैं, मानो कोई महाविरही और अत्यंत कामी पुरुष हों । पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्रीराम आज साधारण मानव के रूप में लीला कर रहे हैं ।

जानकी जी की रुदन लीला

भगवान शंकर और श्रीरामजी में अनन्य प्रेम है । जब-जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब-तब भोले-भण्डारी भी अपने आराध्य की मनमोहिनी लीला के दर्शन के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हो जाते हैं । भगवान शंकर एक अंश से अपने आराध्य की लीला में सहयोग करते हैं और दूसरे रूप में उनकी लीलाओं को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं ।

संत-कृपा से ईश्वरीय विधान भी बदल जाता है

भगवान समुद्र हैं तो संत मेघ हैं, भगवान चंदन हैं तो संत पवन हैं । समुद्र जल से भरा रहता है परंतु वह किसी के काम नहीं आता । परंतु बादल जब उसी समुद्र से जल उठा कर समय-समय पर बरसाते हैं तो सारे संसार में आनंद की लहर छा जाती है । इसी तरह परमात्मा सब जगह हैं; परंतु जब तक संतजन उस परमात्मा का सब जगह गुणगान नहीं करते, तब तक लोग उस परमात्मा को नहीं जान सकते । इसलिए मुझे लगता है राम से अधिक राम का दास (संत) है ।

सीता जी की चूड़ामणि

प्रभु श्रीराम के विवाह के बाद मां जानकी की मुंहदिखाई की रस्म शुरु हुई । कृपा की मूर्ति महारानी सुमित्रा ने जब घूंघट की ओट से जनकदुलारी का मुख देखा तो वे बस उन्हें देखती ही रह गईं और वात्सल्यवश नववधू को सौभाग्य का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने अपने केशों से सजी चूडामणि को निकाल कर जानकी जी के जूड़े में सजा दिया ।

सीताजी को किसके शाप के कारण श्रीराम का वियोग सहना पड़ा...

सीताजी के जीवन में आने वाले विरह दु:ख का बीज उसी समय पड़ गया । इसी वैर भाव का बदला लेने के लिए वही तोता अयोध्या में धोबी के रूप में प्रकट हुआ और उसके लगाये लांछन के कारण सीताजी को वनवास भोगना पड़ा ।