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भगवान विष्णु का द्वादशाक्षर मन्त्र

द्वादशाक्षर मन्त्र बहुत ही प्रभावशाली मन्त्र है । मनुष्य सत्कर्म करते हुए सोते-जागते, चलते, उठते भगवान के इस द्वादशाक्षर मन्त्र का निरन्तर जप करता है तो वह सभी पापों से छूट कर सद्गति को प्राप्त होता है । लक्ष्मी की बड़ी बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रा) भगवान के नाम को सुनकर उस घर से तुरन्त भाग खड़ी होती है ।

भगवान के नाम की महिमा और श्रीकृष्ण के प्रचलित नामों का...

स्कन्दपुराण में यमराज नाममहिमाके विषय में कहते हैं--’जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव--इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतो ! तुम दूर से ही त्याग देना।’ यदि जगत् का मंगल करने वाला श्रीकृष्ण-नाम कण्ठ के सिंहासन को स्वीकार कर लेता है तो यमपुरी का स्वामी उस कृष्णभक्त के सामने क्या है? अथवा यमराज के दूतों की क्या हस्ती है?

भगवान श्रीकृष्ण का नामकरण संस्कार

यदुवंशियों के कुलपुरोहित थे श्रीगर्गाचार्यजी। वह ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे। वसुदेवजी की प्रेरणा से वह एक दिन गोकुल में नंदबाबा के घर आए। गर्गाचार्यजी ने कहा--'नंदजी, यह जो तुम्हारा साँवला सलौना बालक है, यह युग-युग में रंग परिवर्तित करता है। सत्ययुग में श्वेत वर्ण का, त्रेतायुग में रक्त वर्ण था। परन्तु इस समय द्वापरयुग में यह मेघश्याम रूप धारण करके आया है अत: इसका नाम 'कृष्ण' होगा।'