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जानकी जी की रुदन लीला

भगवान शंकर और श्रीरामजी में अनन्य प्रेम है । जब-जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब-तब भोले-भण्डारी भी अपने आराध्य की मनमोहिनी लीला के दर्शन के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हो जाते हैं । भगवान शंकर एक अंश से अपने आराध्य की लीला में सहयोग करते हैं और दूसरे रूप में उनकी लीलाओं को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं ।

मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम, आनन्द और माधुर्य के अवतार माने जाते हैं । अपनी व्रज लीला में उन्होने सबको इन्हीं का ही वितरण किया । अपनी माधुर्य शक्ति से वे जीव को अपनी ओर आकर्षित कर कहते हैं--’तुम यहां आओ ! मैं ही सच्चा आनन्द हूँ । मैं तुमको आत्मस्वरूप का दान करने के लिए बुलाता हूँ ।’

कान्हा मोरि गागर फोरि गयौ रे

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपी की गोरस से भरी मटकी फोड़ने की लीला और उसका भाव वर्णन

प्रथम गोचारण चले कन्हाइ

माता के आनन्द का क्या कहना? जिसका सौंदर्य सारे जग को विस्मित कर दे, जो मोहन है, मनमोहन हैं, भुवन मनमोहन हैं; उनको उबटन लगाकर स्नानादि कराकर नन्दरानी ने ‘गोपाल’ बनने के योग्य सुन्दर नवीन वस्त्राभूषणों से और भी सजा दिया। कहीं नजर न लग जाए, इसलिए माथे पर काजल का डिठौना भी लगा दिया--’राइ लोन उतार जसोदा गोबिंद बल बल जाय।’

भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी लीला

भगवान श्रीकृष्ण लीलावतार हैं। व्रज में उनकी लीलाएं चलती ही रहती हैं। श्रीकृष्ण स्वयं रसरूप हैं। वे अपनी रसमयी लीलाओं से सभी को अपनी ओर खींचते हैं। गोपियां प्राय: नंदभवन में ही टिकी रहतीं हैं। ‘कन्हैया कभी हमारे घर भी आयेगा। कभी हमारे यहां भी वह कुछ खायेगा। जैसे मैया से खीझता है, वैसे ही कभी हमसे झगड़ेगा-खीझेगा।’ ऐसी बड़ी-बड़ी लालसाएं उठती हैं गोपियों के मन में। श्रीकृष्ण भक्तवांछाकल्पतरू हैं। गोपियों का वात्सल्य-स्नेह ही उन्हें गोलोकधाम से यहां खींच लाया है। श्रीकृष्ण को अपने प्रति गोपियों द्वारा की गयी लालसा को सार्थक करना है और इसी का परिणाम माखनचोरी लीला है।

भगवान श्रीकृष्ण की मृद्-भक्षण (माटी खाने की) लीला

श्रीकृष्ण और माँ यशोदा में होड़ सी लगी रहती। जितना यशोदामाता का वात्सल्य उमड़ता, उससे सौगुना बालकृष्ण अपना और लीलामाधुर्य बिखेर देते। इसी क्रम में यशोदामाता का वात्सल्य अनन्त, असीम, अपार बन गया था। उसमें डूबी माँ के नेत्रों में रात-दिन श्रीकृष्ण ही बसे रहते। कब दिन निकला, कब रात हुयी--यशोदामाता को यह भी किसी के बताने पर ही भान होता था। इसी भाव-समाधि से जगाने के लिए ही मानो यशोदानन्दन ने मृद्-भक्षण (माटी खाने की) लीला की थी।

भगवान कृष्ण के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की जोगी...

भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु। जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।

भगवान श्रीकृष्ण की नौका विहार लीला

जिस प्रकार भगवान अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी लीला भी अनंत हैं। भगवान की अनंतता और उनकी लीलाओं की विचित्रता अकथनीय है। उनकी प्रत्येक लीला का गोपनीय रहस्य है जिसे संसार नहीं समझ सकता। ऐसी ही उनकी एक लीला है नौका विहार लीला।

बालकृष्ण की विभिन्न बाललीलाएँ और सूरदासजी द्वारा उनका वर्णन

सूरदासजी उच्चकोटि के संत होने के साथ-साथ उच्चकोटि के कवि थे। इन्हें वात्सल्य और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। सूरदासजी अँधे थे परन्तु इन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। जैसा भगवान का स्वरूप होता था, वे उसे अपनी बंद आँखों से वैसा ही वर्णन कर देते थे।

श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला

बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्या कारण है कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का पान करते हैं। क्या यह अमृतरस से भी ज्यादा स्वादिष्ट है? इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे।