ग्लोबल वार्मिंग आज पृथ्वी की सबसे बड़ी समस्या है जिसके कारण पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है । जब भी हम कोई त्यौहार आदि मनाते हैं तो बाजार से लाई गई चीजों की पेंकिग व फूल आदि की सजावट में ही काफी कचरा इकट्ठा हो जाता है दोकि प्रदूषण फैलाता है । हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में हम उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे । 

भगवान श्रीकृष्ण का जब प्राकट्य हुआ तो प्रकृति पूरी तरह साफ हो गयी थी । नदियों का जल निर्मल व आकाश स्वच्छ हो गया था । गगन में तारे इस प्रकार जगमगा रहे थे मानों अनन्त पात्रों में हीरों के पुष्प भरकर अपने स्वामी को अर्पण करने की इच्छा से खड़े हों । नगरों के मार्ग साफ व सुगन्धित हो गए । सभी वृक्षों ने अपने पुराने पत्ते फेंक कर नये-नये कोमल अरुण पल्लवों को धारण कर लिया था । स्वयं भगवान जहां पृथ्वी की पीड़ा मिटाने के लिए अवतीर्ण होते हों, वहां वार, तिथि, नक्षत्र, योग व प्रकृति आदि शुभ सूचक हो जाएं तो इसमें कौन-सी आश्चर्य की बात है ? अत: भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए इस बार हम ऐसी इको-फ्रेन्डली जन्माष्टमी मनायें जो वातावरण को प्रदूषित न करें । जानिए कैसे—

अशोक के पत्तों की बंदनवार

भगवान श्रीकृष्ण ने वृक्षों को महान वैष्णव बताया है । अशोक के पेड़ प्राय: सभी घरों में होते हैं । अशोक का पेड़ सुख-समृद्धि व धन-धान्य को देने वाला व नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करमे वाला होता है । इसलिए इस जन्माष्टमी प्लास्टिक व कृत्रिम रंगों से बनी बंदनवार लगाने के बजाय इको-फ्रेन्डली व शुभता की प्रतीक अशोक की पत्तियों को कलावे से बांध कर स्वयं बालगोपाल के लिए बंदनवार बनाएं और मन्दिर के द्वार पर लगाएं । फिर देखे वह आपको कितनी हार्दिक प्रसन्नता प्रदान करेगी । इसको विसर्जित करने में भी कोई परेशानी नहीं होगी ।

मन्दिर के द्वार पर बनायें रंगोली

मन्दिर में रंगोली या अल्पना सजाना हमारे आध्यात्मिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग माना गया है । हिन्दू धर्म में यज्ञ मंडप व यज्ञ की वेदी पर रंगोली सजाने की परम्परा रही है । इसे मंगलकामना व समृद्धि का सूचक माना जाता है, साथ ही इसका सम्बन्ध शुद्धिकरण से भी है । श्रीकृष्ण का जब प्राकट्य हुआ तो प्रकृति में भी शुद्धिकरण की प्रक्रिया हुई थी तो क्यों न हम भी बालगोपाल के प्राकट्य के अवसर पर अपने घर को पूर्ण रूप से शुद्ध कर शुभता से भर दें । भगवान के लिए रंगोली प्राकृतिक चीजों चावल का आटा, गेहूँ का आटा आदि से सजाएं, कृत्रिम रंगों से नहीं । इसका लाभ यह होगा कि जब रंगोली हटायेंगे तो आटा चींटी को डाल दें तो उनको भोजन मिल जायेगा और कोई अवशिष्ट पदार्थ नही बचेगा ।

बालगोपाल के लिए स्वयं तैयार करें हरिचन्दन

भगवान श्रीकृष्ण को चंदन विशेष प्रिय है । चंदन सर्वश्रेष्ठ वैष्णव है जो अपने शरीर को घिस कर भगवान को सुगंध और शीतलता प्रदान करता है इसीलिए भगवान उसे अपने मस्तक और सर्वांग में धारण करते हैं । भागवत का श्लोक है ‘बर्हापीडं नटवरवपु’ उसमें एक शब्द है सर्वांगे हरिचन्दनं । ये हरिचन्दन क्या है जिसे श्रीकृष्ण अपने सम्पूर्ण शरीर पर धारण करते हैं ? हरिचन्दन इस प्रकार बनता है—

तुलसी की लकड़ी या चंदन की लकड़ी को कपूर और केसर मिलाकर जब घिसा जाता है तो जो लेप तैयार होता है उसे हरिचंदन कहते हैं । इस जन्माष्टमी हरिचंदन बनाकर कान्हाजी को अवश्य प्रसन्न करें ।

स्वयं बनाएं तुलसीमाला

तुलसी के बिना श्रीकृष्ण की पूजा और श्रृंगार अधूरा रहता है । वर्षा ऋतु में तुलसी बहुतायत में पाई जाती है और इसमें कोई कीड़ा भी नहीं होता है । अत: आनन्द (श्रीकृष्ण) के प्राकट्य पर स्वयं तुलसीदलों से कान्हाजी के लिए माला तैयार करें, मन अपने-आप आनन्द से भर जाएगा । तुलसी की माता बनाते समय सुई का प्रयोग न करें बल्कि फंदा बनाकर तुलसीदल पिरोकर माला तैयार करें ।

मखाने की माला लायेगी घर में सुख-समृद्धि

जन्माष्टमी पर बारिश की वजह से फूलों में कीड़ा लग जाता है । साथ ही जन्माष्टमी के उत्सव पर बालगोपाल को भारी पोशाक व श्रृंगार धराया जाता है । फूलों की माला की जगह कमलगट्टे से बने मखानों की माला कमलनयन श्रीकृष्ण को धारण कराएं । उत्सव के बाद मखानों को प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्यों में बांट दें । 

बालगोपाल का स्वागत बधाई के पदों के गायन से करें

श्रीकृष्ण के शुभागमन पर उनका स्वागत मोबाइल या टेप पर बजने वाले भजनों से न करें । हमारा भक्ति साहित्य अष्टछाप के कवियों के हजारों बधाई पदों से भरा पड़ा है । अपनी सुविधानुसार कुछ पदों का गायन या पठन परिवार के सभी सदस्यों के साथ स्वयं करें । इससे ध्वनि प्रदूषण भी नहीं होगा और भक्ति कवियों के योगदान को भी याद कर लिया जाएगा ।

श्रीकृष्ण जन्म की बधाई के पद

(१)
अनौखौ जायौ ललना मैं वेदन में सुनि आई ।
मैं वेदन में सुनि आई, पुरानन में सुनि आई ।
मथुरा में याने जनम लियो है, गोकुल में झूल्यौ पलना ।
ले वसुदेव चले गोकुल कूँ याके चरन परस गई यमुना ।
काहे कौ याकौ बन्यौ है पालनौ, काहे के लागे फुन्दना ।
रत्नजटित कौ बन्यौ है पालनौ, रेशम के लागे फुन्दना ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, चिरजीवौ यह ललना ।।

(२)
सब मिलि मंगल गावो माई ।
आज लाल को जन्मदिवस है बाजत रंग बधाई ।
आंगन लीपो चौक पुरावो विप्र पढन लागे वेद ।
करो सिंगार श्यामसुन्दर को चोवा चंदन मेद ।
आनंद भरी नंदजू की रानी फूली अंग न समाई ।
परमानंददास तिहिं ओसर बहुत न्योछावर पाई ।।

श्रीकृष्ण के शुभागमन का महाआनन्द केवल बाह्य जगत को ही आनन्दित नहीं कर देता बल्कि लोगों के अन्तर्मन को भी प्रमुदित कर देता है ।

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