bhagwan vishnu dattaray avatar

दत्रात्रेयजी साक्षात् भगवान हैं

प्राणियों के अज्ञान को मिटाने और उनके हृदय में ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए भगवान विष्णु ने सद्गुरु ‘श्रीदत्तात्रेयजी’ के रूप में अवतार धारण किया । भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में सिद्धराज श्रीदत्तात्रेयजी का अवतार छठा माना जाता है । इस अवतार की समाप्ति नहीं है इसलिए श्रीदत्तात्रेयजी ‘अविनाश’ कहलाते हैं । चिरंजीवी होने के कारण इनके दर्शन अब भी भक्तों को होते हैं । समस्त सिद्धों के राजा होने के कारण इन्हें ‘सिद्धराज’ कहते हैं । योगविद्या के असाधारण आचार्य होने के कारण वे ‘योगीराज’ कहलाते हैं । उन्होंने अपने योगचातुर्य से देवताओं की रक्षा की इसलिए वे ‘देवदेवेश्वर’ भी कहे जाते हैं ।

महर्षि अत्रि और सती अनुसूया के पुत्र हैं श्रीदत्तात्रेयजी 

श्रीमद्भागवत (२।७।४) के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि अत्रि ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से घोर तप किया । भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो महर्षि अत्रि ने कहा—‘मुझे प्राणियों का दु:ख दूर करने वाला पुत्र प्राप्त हो ।’ 

इस पर भगवान विष्णु ने कहा—‘मैंने अपने-आप को तुम्हें दे दिया ।’ इस प्रकार भगवान विष्णु ही महर्षि अत्रि  और सती अनुसूया के पुत्र रूप में अवतरित हुए और स्वयं को अत्रि को दान देने के कारण ‘दत्त’ कहलाए । अत्रि के पुत्र होने से वे ‘आत्रेय’ भी कहलाते हैं । दत्त और आत्रेय नामों के संयोग से इनका नाम दत्तात्रेय’ प्रसिद्ध हो गया । महायोगी दत्तात्रेयजी का आविर्भाव मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था जिसे ‘दत्तात्रेय जयन्ती’ के रूप में मनाया जाता है ।

परम कृपालु भगवान दत्तात्रेय

▪️ दयालु भगवान दत्तात्रेय कृपा की मूर्ति हैं । वे अंदर से बालक के समान सरल और बाहर से उन्मत्त से दिखाई पड़ने वाले हैं । भक्त के स्मरण करते ही वे उसके पास पहुंच जाते हैं, इसलिए उन्हें ‘स्मृतिगामी’ तथा ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ भी कहते हैं ।

▪️ उनका उन्मत्तों की भांति विचित्र वेष और उनके आगे-पीछे कुत्ते होने से उन्हें पहचानना सरल नहीं है । उच्च-कोटि के संत ही उन्हें पहचान सकते हैं ।

▪️ ये सदा ही ज्ञान का दान देते रहते हैं, इसलिए ‘गुरुदेव’ या ‘सद्गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं ।

▪️ दत्तात्रेयजी श्रीविद्या के परम आचार्य हैं । इनके नाम पर ‘दत्त सम्प्रदाय’ दक्षिण भारत में विशेष रूप से प्रसिद्ध है । वहां इनके अनेक मन्दिर हैं ।

▪️ गिरनार में भगवान दत्तात्रेय का सिद्धपीठ है और इनकी गुरुचरण पादुकाएं वाराणसी और आबूपर्बत आदि स्थानों में हैं ।

▪️ दत्तात्रेयजी के नाम से एक उपपुराण ‘दत्तपुराण’ भी है । इसमें उनकी आराधना विधि का विस्तार से वर्णन है ।

▪️ श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि भगवान दत्तात्रेय ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी । ये चौबीस गुरु हैं—पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंग, भौंरा या मधुमक्खी, हाथी, शहद निकालने वाला, हरिन, मछली, पिंगला वेश्या, कुरर पक्षी, बालक, कुंआरी कन्या, बाण बनाने वाला, सर्प, मकड़ी और भृंगी कीड़ा ।

भगवान दत्तात्रेय के आविर्भाव की कथा

एक बार लक्ष्मीजी, सतीजी और सरस्वतीजी को अपने पातिव्रत्य पर गर्व हो गया । भगवान को गर्व सहन नहीं होता है । उन्होंने इन तीनों के गर्वहरण के लिए एक लीला करने की सोची । इस कार्य के लिए उन्होंने नारदजी के मन में प्रेरणा उत्पन्न की । नारदजी घूमते हुए देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों के पास बारी-बारी जाकर कहा—‘अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया बहुत सुन्दर हैं, उनके पातिव्रत्य के समक्ष आपका सतीत्व कुछ भी नहीं है ।’

‘वे हमसे बड़ी कैसे हैं ?’ यह सोचकर तीनों देवियों के मन में ईर्ष्या होने लगी ।  तीनों देवियों ने अपने पतियों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश को नारदजी की बात बताई और अनुसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा करने को कहा । तीनों देवों ने अपनी पत्नियों को सती शिरोमणि अनुसूया की परीक्षा न लेने के लिए समझाया पर वे अपनी जिद पर अड़ी रहीं ।

तीनों देव साधुवेश बनाकर अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे । अत्रि ऋषि उस समय आश्रम में नहीं थे । अतिथियों को आया देखकर देवी अनुसूया ने उन्हें प्रणाम कर अर्घ्य, फल आदि दिए परन्तु तीनों साधु बोले—‘हम तब तक आपका आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे जब तक आप निर्वस्त्र होकर हमारे समक्ष नहीं आएंगी ।’

यह सुनकर देवी अनुसूया अवाक् रह गईं परन्तु आतिथ्यधर्म का पालन करने के लिए उन्होंने भगवान नारायण का व अपने पतिदेव का ध्यान किया तो उन्हें तीनों देवों की लीला समझ आ गई । उन्होंने हाथ में जल लेकर कहा—‘यदि मेरा पातिव्रत्य-धर्म सत्य है तो ये तीनों देव छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं ।’

इतना कहते ही तीनों देव छ: मास के शिशु बन कर रुदन करने लगे । तब माता ने तीनों शिशुओं को बारी-बारी से गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झुलाने लगीं । ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हो गया ।

इधर देवलोक में जब तीनों देव वापस न आए तो तीनों देवियां व्याकुल हो गईं । तब नारदजी आए, उन्होंने तीनों देवों का हाल कह सुनाया । हार कर तीनों देवियां देवी अनुसूया के पास आईं और उनसे क्षमा मांगकर अपने पतियों को पहले जैसा करने की प्रार्थना करने लगीं । 

दयामयी देवी अनुसूया ने तीनों देवों को पहले जैसा कर दिया । ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने प्रसन्न होकर देवी अनुसूया से वर मांगने को कहा तो देवी अनुसूया बोलीं—‘आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों ।’ 

तब त्रिदेवों ने कहा—‘आप चिन्ता न करें, हम आपके पुत्ररूप में आपके पास ही रहेंगे ।’

तीनों देव ‘तथास्तु’ कहकर अपनी पत्नियों के साथ अपने लोक को चले गये । 

कालान्तर में ये तीनों देव देवी अनुसूया के गर्भ से प्रकट हुए । ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा (रजोगुणप्रधान हैं), शंकर के अंश से दुर्वासा (तमोगुणप्रधान हैं) और विष्णु के अंश से दत्तात्रेयजी (सत्त्वगुणप्रधान हैं) का जन्म हुआ । 

त्रिदेव के दिव्य दर्शन से महर्षि अत्रि महाज्ञानी हुए और देवी अनुसूया पराभक्ति सम्पन्न हुईं ।

दत्तात्रेयजी का त्रिमूर्ति स्वरूप होने का कारण

मराठी भाषा के प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ ‘श्रीगुरुचरित्र’ में दत्तात्रेयजी के त्रिमूर्ति स्वरूप के विषय में कहा गया है कि—चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा का यज्ञोपवीत-संस्कार होने के बाद चन्द्रमा और दुर्वासा अपना स्वरूप तथा तेज दत्तात्रेयजी को प्रदान कर तपस्या के लिए वन में चले गये । इस प्रकार दत्तात्रेयजी त्रिमूर्ति और तीन तेजों से युक्त हो गये । दत्तात्रेयजी के तीन मस्तक तीन वेद का प्रतिपादन करते हैं ।

दत्तात्रेयजी का योगदान

भगवान विष्णु ने दत्तात्रेयजी के रूप में अवतरित होकर जगत का बड़ा ही उपकार किया है । उन्होंने श्रीगणेश, कार्तिकेय, प्रह्लाद, परशुराम, यदु, अलर्क आदि को योगविद्या और अध्यात्मविद्या का उपदेश दिया । कलियुग में भी भगवान शंकराचार्य, गोरक्षनाथजी, महाप्रभु आदि पर दत्रात्रेयजी ने अपना अनुग्रह बरसाया । संत ज्ञानेश्वर, जनार्दनस्वामी, एकनाथजी, दासोपंत, तुकारामजी—इन भक्तों को दत्तात्रेयजी ने अपना प्रत्यक्ष दर्शन दिया ।

  • दत्तात्रेयजी ने वैदिक धर्म की स्थापना की, 
  • लोगों को अपने कर्तव्यकर्म का उपदेश किया, 
  • सामाजिक वैमनस्य को दूर किया और 
  • भक्तों को सांसारिक पीड़ा से मुक्ति का, सच्ची सुख-शान्ति और आवागमन के बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखलाया ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here