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एकादशी व्रत की विधि व नियम

पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है । मनुष्य को सुख चाहिए लेकिन कष्टरहित । यह कैसे संभव है ? सुख दिखता है, पुण्य दिखता नहीं, दु:ख दिखता है किन्तु पाप दिखता नहीं । यदि मानव को कष्ट रहित जीवन चाहिए तो व्रत-नियम का पालन अनिवार्य है । व्रत-नियम के पालन से श्रीहरि को प्रसन्नता होती है, और श्रीहरि की प्रसन्नता से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा कृष्णभक्ति में रचित अच्युताष्टकम्

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र है । जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय, रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है ।

भगवान विष्णु को समर्पित षट्पदी स्तोत्र

सच्चे हृदय से इन नियमों का पालन क्रमश: मनुष्य के मन को सच्ची भक्ति की ओर ले जाता है । इन एक-एक सोपानों पर चढ़ते हुए मन धीरे-धीरे पूर्णता की ओर अर्थात् मोक्ष की ओर अग्रसर होता है ।

भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम

भगवान के भक्त को भगवान जितने प्यारे लगते हैं, उनका नाम भी उसे उतना ही प्यारा लगता है; क्योंकि तेज:स्वरूप श्रीकृष्ण ही नामरूप में प्रकट होते हैं । अत: भगवान का नाम हमारी जिह्वा पर आ गया तो स्वयं भगवान ही हमारी जिह्वा पर आ गए ।

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।
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