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व्रज में रथ चढ़ चले री गोपाल

रथयात्रा का संदेश है कि मानव-शरीर रूपी रथ पर श्रीकृष्ण को आरूढ़ कर दिया जाए तो कंसरूपी पापी वृत्तियों का अंत हो जाएगा जिससे शरीर व आत्मा स्वयं श्रीकृष्णमय (दिव्य) हो जाएंगे और जीवन सदैव के लिए एक महोत्सव बन जाएगा ।

व्रज में परमात्मा श्रीकृष्ण के अटपटे नाम

जानें श्रीकृष्ण के व्रज में मधुररस से भरे विभिन्न नाम कौन-से हैं

श्रीकृष्ण का चतुर्भुजरूप और श्रीराधा

श्रीराधा और गोपांगनाएं नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की मधुर कान्ताभाव से सेवा-आराधना करती हैं। न वे श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य को जानती हैं, न मानती हैं, न उसे देखने की कभी उनमें इच्छा ही जागती है। वरन् श्रीकृष्ण के चतुर्भुजरूप को देखकर वे डरकर संकोच में पड़ जाती हैं। उन्हें जहां जरा भी श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यरूप दिखायी दिया, वहीं वे अपने ही प्रियतम श्यामसुन्दर को श्यामसुन्दर न मानकर कुछ अन्य मानने लगती हैं। व्रज में श्रीकृष्ण की भगवत्ता या उनके परमेश्वररूप की कोई पूछ नहीं है।

भगवान श्रीकृष्ण का व्रज में अद्भुत माधुर्य एवं ऐश्वर्य

व्रज में श्रीकृष्ण की न तो कोई सेना थी, और न ही कोई अस्त्र-शस्त्र। न ही उनका उग्ररूप कभी प्रकट हुआ और न ही कोई युद्ध लम्बा चला। राक्षस आया और खेलते-खेलते दो घड़ी में ही कन्हैया ने उसका काम-तमाम कर दिया । इसीलिए ब्रह्माण्डपुराण में नारदजी ने कहा है--‘चक्रधारी नारायण चक्र धारण करके भी जिन असुरों का विनाश सहज में नहीं कर सकते, श्रीकृष्ण ने नयी-नयी बाललीला करते हुए उन सबका विनाश कर दिया। असुरमारन भी उनकी बाललीला का एक अंग था, वह भी खेल की एक पद्धति थी।’
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