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भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण

‘हे त्रिलोकीनाथ! तू (अवतार लेकर) नीचे उतरता है, क्योंकि तेरा आनन्द हम पर ही निर्भर है। यदि हम न होते तो तुम्हें प्रेम का अनुभव कहां से होता? (तुम किसके साथ हिल-मिलकर बातें करते, खेलते, खाते-पीते?)’

दामोदर श्रीकृष्ण की ऊखल-बंधन लीला

मैया की रस्सी पूरी हो गयी थी और विश्व को मुक्ति देने वाला स्वयं बंधा खड़ा था ऊखल से। भगवान न बंधने की लीला करते रहे और अंत में बंध गये किन्तु उनका बन्धन भी दूसरों की मुक्ति के लिए था। इस प्रकार बंधकर उन्होंने संसार को यह बात दिखला दी कि मैं अपने प्रेमी भक्तों के अधीन हूँ।

भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी लीला

भगवान श्रीकृष्ण लीलावतार हैं। व्रज में उनकी लीलाएं चलती ही रहती हैं। श्रीकृष्ण स्वयं रसरूप हैं। वे अपनी रसमयी लीलाओं से सभी को अपनी ओर खींचते हैं। गोपियां प्राय: नंदभवन में ही टिकी रहतीं हैं। ‘कन्हैया कभी हमारे घर भी आयेगा। कभी हमारे यहां भी वह कुछ खायेगा। जैसे मैया से खीझता है, वैसे ही कभी हमसे झगड़ेगा-खीझेगा।’ ऐसी बड़ी-बड़ी लालसाएं उठती हैं गोपियों के मन में। श्रीकृष्ण भक्तवांछाकल्पतरू हैं। गोपियों का वात्सल्य-स्नेह ही उन्हें गोलोकधाम से यहां खींच लाया है। श्रीकृष्ण को अपने प्रति गोपियों द्वारा की गयी लालसा को सार्थक करना है और इसी का परिणाम माखनचोरी लीला है।

भगवान श्रीकृष्ण की मृद्-भक्षण (माटी खाने की) लीला

श्रीकृष्ण और माँ यशोदा में होड़ सी लगी रहती। जितना यशोदामाता का वात्सल्य उमड़ता, उससे सौगुना बालकृष्ण अपना और लीलामाधुर्य बिखेर देते। इसी क्रम में यशोदामाता का वात्सल्य अनन्त, असीम, अपार बन गया था। उसमें डूबी माँ के नेत्रों में रात-दिन श्रीकृष्ण ही बसे रहते। कब दिन निकला, कब रात हुयी--यशोदामाता को यह भी किसी के बताने पर ही भान होता था। इसी भाव-समाधि से जगाने के लिए ही मानो यशोदानन्दन ने मृद्-भक्षण (माटी खाने की) लीला की थी।

माता यशोदा का श्रीकृष्ण-प्रेम

माता यशोदा के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है, जिनके स्तनों को साक्षात् ब्रह्माण्डनायक ने पान किया है। भगवान ने अपने भक्तों की इच्छा के अनुरूप अनेक रूप धारण किए हैं, परन्तु उनको ऊखल से बांधने का या छड़ी लेकर ताड़ना देने का सौभाग्य केवल महाभाग्यशाली माता यशोदा को ही प्राप्त हुआ है। ऐसा सुख, ऐसा वात्सल्य-आनन्द संसार में किसी को प्राप्त न हुआ है, न होगा। श्रीशुकदेवजी तो श्रीयशोदाजी को वात्सल्य-साम्राज्य के सिंहासन पर बिठाकर उनको दण्डवत् करते हुए कहते हैं--’देवी ! तुम्हारे जैसा कोई नहीं है। तुम्हारी गोद में तो सम्पूर्ण फलों-का-फल नन्हा-सा शिशु बनकर बैठा है।’

मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं

श्रीकृष्ण की बालहठ लीला मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं, धौरी को पय पान न करिहौ, बेनी सिर न गुथेहौं। मोतिन माल न धरिहौं उर पर, झंगुली कंठ...
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