Home Tags यशोदामाता

Tag: यशोदामाता

दामोदर श्रीकृष्ण द्वारा यमलार्जुन (कुबेरपुत्रों) का उद्धार

भगवान बंधन में बंधकर उन कुबेरपुत्रों के उद्धार के लिए आ पहुंचे। उनकी गाड़ीलीला अब पूरी हो गयी और मोक्षलीला का प्रारम्भ हो गया। वे वृक्षों की ओर ऊखल खींचते चले जा रहे हैं और उन अर्जुन वृक्षों के पास जा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण को निकट आया देखकर उन यमलार्जुन की क्या दशा हुई, इसे कौन बताये?

दामोदर श्रीकृष्ण की ऊखल-बंधन लीला

मैया की रस्सी पूरी हो गयी थी और विश्व को मुक्ति देने वाला स्वयं बंधा खड़ा था ऊखल से। भगवान न बंधने की लीला करते रहे और अंत में बंध गये किन्तु उनका बन्धन भी दूसरों की मुक्ति के लिए था। इस प्रकार बंधकर उन्होंने संसार को यह बात दिखला दी कि मैं अपने प्रेमी भक्तों के अधीन हूँ।

भगवान श्रीकृष्ण की सरस बाललीलाएं

जो गोपी अनेक जन्मों से अपने हृदय के जिन भावों को श्रीकृष्ण को अर्पण करने की प्रतीक्षा कर रही है, उसकी उपेक्षा वह कैसे करें? इन्हीं गोपियों की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए ही तो निर्गुण-निराकार परम-ब्रह्म ने सगुण-साकार लीलापुरुषोत्तमरूप धारण किया है। दिन भर के भूखे-प्यासे श्यामसुन्दर गोपी के साथ उसकी गौशाला में जाकर गोमय की टोकरियां उठवाने लगे। एक हाथ से अपनी खिसकती हुई काछनी को सम्हालते और दूसरे हाथ से गोमय की खाँच गोपी के सिर पर रखवाते। ऐसा करते हुए कन्हैया का कमल के समान कोमल मुख लाल हो गया। चार-पांच टोकरियां उठवाने के बाद कन्हैया बोले--गोपी, तेरा कोई भरोसा नहीं है। तू बाद में धोखा दे सकती है, इसलिए गिनती करती जा। और उस निष्ठुर गोपी ने कन्हैया के लाल-लाल मुख पर गोमय की हरी-पीली आड़ी रेखाएं बना दीं। अब तो गोपी अपनी सुध-बुध भूल गयी और कन्हैया के सारे मुख-मण्डल पर गोमय के प्रेम-भरे चित्र अंकित हो गये--’गोमय-मण्डित-भाल-कपोलम्।’
Exit mobile version