Home Tags परमात्मा

Tag: परमात्मा

भगवान का रूप इतना सुन्दर क्यों होता है ?

ऐसा माना जाता है कि सभी दिव्य गुणों और भूषणों—मुकुट, किरीट, कुण्डल आदि ने युग-युगान्तर, कल्प-कल्पान्तर तक तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया । भगवान बोले—‘वर मांगो ।’ गुणों और आभूषणों ने कहा—‘प्रभो ! आप हमें अंगीकार करें और हमें धारण कर लें । यदि आप हमें स्वीकार नहीं करेंगे तो हम ‘गुण’ कहने लायक कहां रह जाएंगे ? आभूषणों ने कहा—‘यदि आप हमें नहीं अपनाएगें तो हम ‘भूषण’ नहीं ‘दूषण’ ही बने रहेंगे ।’ भगवान ने उन सबको अपने विग्रह में धारण कर लिया ।

परब्रह्म की सृष्टिकामना और गोलोक का प्राकट्य

अव्यक्त से व्यक्त होना, एक से अनेक होना, निराकार से साकार होना, सूक्ष्म का स्थूल होना सृष्टि है। वे स्वयं ही अपने-आपकी, अपने-आप में, अपने-आप से ही सृष्टि करते हैं। वे ही स्रष्टा, सृज्य और सृष्टि हैं। उनके अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है। सृष्टि को अनादि माना जाता है। सृष्टि के बाद प्रलय और प्रलय के बाद सृष्टि--यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। विभिन्न कल्पों में सृष्टि वर्णन में भी भिन्नता पाई जाती है। कभी आकाश से, कभी तेज से, कभी जल से और कभी प्रकृति से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। रजोगुण की प्रधानता से सृष्टि होती है और तमोगुण की प्रधानता से प्रलय होता है।
Exit mobile version