सुख-दु:ख और भगवत्कृपा

दु:ख के समय का कोई साथी नहीं होता बल्कि लोग तरह-तरह की बातें बनाकर दु:ख को और बढ़ा देते हैं । ऐसी स्थिति में यह याद रखें कि निन्दा करने वाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते । ढूंढ़कर हमारे जीवन के एक-एक दाग को साफ करना चाहते हैं । वे तो हमारे बड़े उपकारी हैं जो हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं ।

पितरों का आभार व्यक्त करने की तिथि है अमावस्या

जिस घर में पितर प्रसन्न रहते हैं वहां परिवार में सुख-शान्ति, धन-सम्पत्ति व संतान भी श्रेष्ठ होती है । अत: कैसे करें अमावस्या तिथि पर पितरों को प्रसन्न ?

धनत्रयोदशी : समृद्धि की कामना का प्रथम दिन

लक्ष्मीजी दीपक की ज्योति में लीन होकर चारों दिशाओं में फैल गईं और भगवान विष्णु देखते ही रह गये । दूसरे दिन तेरस को किसान ने लक्षमीजी के बताये अनुसार ही कार्य किया । उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया । अब तो किसान हर साल तेरस को लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा । और यह तिथि ‘धनतेरस’ कहलाने लगी ।

देवता और पितर दोनों को क्यों प्रिय हैं तिल ?

माघी पूर्णिमा के दिन कांस्य पात्र में तिल भरकर इस भावना से दान करें कि ‘मां इन तिलों की संख्या से अधिक दु:ख तुमने मेरे लिए सहन किए हैं । अत: इस तिलपात्र के दान से मैं तुम्हारे मातृ-ऋण से उऋण हो जाऊं ।’ इस प्रकार इस दिन माता के निमित्त जो भी कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है ।

संकटनाश के लिए हनुमानजी की विशेष पूजा

किसी एक देवता की आराधना एक ही फल प्रदान करती है किन्तु हनुमानजी की आराधना बुद्धि,बल, कीर्ति, धीरता, निर्भीकता, आरोग्य, व वाक्यपटुता आदि सभी कुछ प्रदान कर देती है ।

श्रीगणेश की 5 मिनट की संक्षिप्त पूजा विधि

तैंतीस करोड़ देवताओं में सबसे विलक्षण और सबके आराध्य श्रीगणेश आनन्द और मंगल देने वाले, कृपा और विद्या के सागर, बुद्धि देने वाले, सिद्धियों के भण्डार और सब विघ्नों के नाशक हैं । अत: अपना कल्याण चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन उनका स्मरण व अर्चन अवश्य करना चाहिए ।

प्रकृति को समर्पित सबसे अनूठा त्यौहार : छठ महापर्व

चढ़ते (उदय होते) व उतरते (अस्त होते) हुए सूर्य—इन दोनों को प्रणाम करने का अर्थ है कि हम समभाव से किसी के उत्कर्ष और अपकर्ष में साथ बने रहते हैं । सूर्य को प्रणाम का अर्थ है अस्त होते यानी बुजुर्गों को सम्मान देने का भाव । सूर्यदेव हमे उष्मा, उर्जा व जीवन में उल्लास प्रदान करते हैं; इसलिए सूर्य को दिए जाने वाले अर्घ्य से हम अपने अंदर की जीवन-अग्नि को जीवित रखते हैं ।

चन्द्रमा की प्रसन्नता के लिए चान्द्रायण व्रत

कुण्डली में कमजोर चन्द्रमा को ठीक करने, पापों के नाश, किसी प्रायश्चित के लिए और चन्द्रलोक की प्राप्ति के लिए करें ‘चान्द्रायण’ व्रत ।

दस प्रकार के पापों से मुक्ति का पर्व गंगा दशहरा

दशहरे के दिन मनुष्य को गंगाजी की दस प्रकार के फूलों, दस प्रकार की गन्ध, दस प्रकार के नैवेद्य (भोग), दस ताम्बूल और दस दीपों से पूजा करनी चाहिए । इसके बाद इस मन्त्र की एक माला करनी चाहिए ।

भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत

शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।
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