एकादशी व्रत की विधि व नियम

पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है । मनुष्य को सुख चाहिए लेकिन कष्टरहित । यह कैसे संभव है ? सुख दिखता है, पुण्य दिखता नहीं, दु:ख दिखता है किन्तु पाप दिखता नहीं । यदि मानव को कष्ट रहित जीवन चाहिए तो व्रत-नियम का पालन अनिवार्य है । व्रत-नियम के पालन से श्रीहरि को प्रसन्नता होती है, और श्रीहरि की प्रसन्नता से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?

जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।

शरीर, मन और आत्मा के कायाकल्प के लिए कल्पवास

ऐसी मान्यता है कि जो संकल्प कर कल्पवास करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है ।

श्राद्ध का प्रचलन कब शुरु हुआ ?

मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिण्डदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं । पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, लंतति, सौभाग्य, समृद्धि, रामनापूर्ति, वाक्सिद्धि, विद्या और सभी सुखों की प्राप्ति होती है । सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, भवन और सुख साधन श्राद्ध कर्ता को स्वयं ही सुलभ हो जाते हैं ।

छाता और जूता दान करने की प्रथा कैसे शुरु हुई ?

भगवान सूर्य ने महर्षि को शीघ्र ही छाता और जूता (उपानह)—ये दो वस्तुएं प्रदान कीं और कहा—‘यह छत्र मेरी किरणों का निवारण करके मस्तक की रक्षा करेगा तथा ये जूते पैरों को जलने से बचाएंगे । आज से ये दोनों वस्तुएं जगत में प्रचलित होंगी और पुण्य के अवसरों पर इनका दान अक्षय फल देने वाला होगा ।’

श्रीगणेश की 5 मिनट की संक्षिप्त पूजा विधि

तैंतीस करोड़ देवताओं में सबसे विलक्षण और सबके आराध्य श्रीगणेश आनन्द और मंगल देने वाले, कृपा और विद्या के सागर, बुद्धि देने वाले, सिद्धियों के भण्डार और सब विघ्नों के नाशक हैं । अत: अपना कल्याण चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन उनका स्मरण व अर्चन अवश्य करना चाहिए ।

भगवान व्यास कृत भगवती स्तोत्र

जो मनुष्य कहीं भी रह कर पवित्र भावना से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है, अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती (दुर्गा) सदा ही प्रसन्न रहती हैं ।

अक्षय फल देने वाला लक्षवर्ति दान-व्रत

पुण्य के काम में धन व्यय करने से वह घटता नहीं बल्कि बढ़ता है । जैसे छोटे से बीज में महान वट वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार शुभ समय में किया गया छोटा-सा भी पुण्य महान फल देता है । लक्षवर्ति दान पूजा-विधि ।

अपने इष्टदेव का निर्णय कैसे करें?

गोस्वामीजी के मन में श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण गोस्वामीजी ने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से प्रार्थना करते हुए कहा—‘यह मस्तक आपके सामने तभी नवेगा जब आप हाथ में धनुष बाण ले लोगे ।’

कलियुग केवल नाम अधारा

सभी मुनिगण वेदव्यासजी के आश्रम में पहुंचे और उनसे बोले—‘हम यह जानना चाहते हैं कि आपने स्नान करते समय ‘कलि तुम धन्य हो’, ‘कलि तुम साधु हो’—ऐसा कहकर कलियुग का गुणगान क्यों किया ?’
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