लक्ष्मण-गीता : लक्ष्मण और निषादराज गुह संवाद

कैकेयी ने श्रीराम को वनवास दिया, उस समय माता कौसल्या को अत्यंत दु:ख हुआ । लेकिन श्रीराम ने माता को समझाते हुए कहा—‘मां ! यह मेरे कर्मों का फल है । मैंने पूर्वजन्म में माता कैकेयी को दु:ख दिया था, उसके फलस्वरूप मुझे वनवास मिला है । मैंने परशुराम अवतार में जो किया, उसका फल रामावतार में मुझे भोगना ही है ।

भगवान श्रीराम का सौ नामों का (शतनाम) स्तोत्र

त्रिलोकी में यदि श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘राम-नाम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं । यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड (६।३२-५१) में दिया गया है ।

अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी

हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है ।

वात्सल्यमूर्ति हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज

हनुमानजी जब सूक्ष्म रूप धारण कर पाताललोक के द्वार के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उस वानर ने गर्जते हुए कहा—‘तुम कौन हो? सूक्ष्म रूप धारण कर तुम चोरी से द्वार के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते । मेरा नाम मकरध्वज है और मैं परम पराक्रमी बजरंगबली हनुमान का पुत्र हूँ ।’ हनुमानजी ने आश्चर्यचकित होकर कहा—‘हनुमान का पुत्र ? हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं । तुम उनके पुत्र कहां से आए ?’

रामावतार की यज्ञ-सीताओं और गोपियों का क्या है सम्बन्ध ?

गोपियों का एक यूथ ‘रामावतार में यज्ञ में स्थापित सीताजी की प्रतिमाओं’ का था । कैसे यज्ञ-सीताएं गोपी रूप में अवतरित हुईं—वहीं प्रसंग इस ब्लॉग में दिया जा रहा है ।

महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’

सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।

कलियुग का खेल

जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो ।

रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति

कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?

जैसी वीर माता अजंना वैसे महावीर पुत्र हनुमान

माता अंजना लक्ष्मणजी के मन के भाव ताड़ गईं और बोली—‘ऐसा लगता है कि छोटे राजकुमार को मेरे दूध पर संदेह हो रहा है । मैं इन्हें अभी अपने दूध का प्रभाव दिखाती हूँ ।’ यह कह कर माता ने अपने स्तन से दूध की एक धार सामने के पर्वत पर छोड़ी । दूध की धार से वह समूचा पर्वत फट गया । यह देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए ।

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |
Exit mobile version