वास्तु देवता कौन हैं ?

वास्तुदेवता की पूजा के लिए वास्तु की प्रतिमा तथा वास्तुचक्र बनाया जाता है । वास्तुचक्र अनेक प्रकार के होते हैं । अलग-अलग अवसरों पर भिन्न-भिन्न पद के वास्तुचक्र बनाने का विधान है । वास्तु कलश में वास्तुदेवता (वास्तोष्पति) की पूजा कर उनसे सब प्रकार की शान्ति व कल्याण की प्रार्थना की जाती है ।

बापू के बंदर-गुरु

भगवान की तीन नियामतें हैं—आंख, कान और वाणी । इन नियामतों का हम चाहे सदुपयोग करें, चाहे दुरुपयोग, यह हमारे हाथ की बात है और यही उपदेश है बापू के इन तीन बंदरों का ।

परमयोगी श्रीआदिशंकराचार्य का परकाया-प्रवेश

परकाया-प्रवेश किसे कहते हैं ? श्रीआदिशंकराचार्य का राजा अमरुक के मृत शरीर में प्रवेश, मण्डन मिश्र की पत्नी को कामशास्त्र पर शास्त्रार्थ में हराना, मण्डन मिश्र का शिष्यत्व ग्रहण करना ।

ज्ञानवर्धक कथा : शुकदेवजी मुनि कैसे बने ?

महर्षि वेदव्यास और शुकदेवजी में हुआ बहुत ही ज्ञानवर्धक संवाद हुआ जो मोहग्रस्त सांसारिक प्राणी को कल्याण का मार्ग दिखाने वाला है ।

गीता-जयन्ती पर अपने कल्याण के लिए क्या करें ?

श्रीमद्भगवद्गीता में कुल अठारह (18) अध्याय हैं जो महाभारत के भीष्मपर्व में निहित हैं । इनमें जीवन का इतना सत्य, इतना ज्ञान और इतने ऊंचे सात्विक उपदेश भरे हैं, जिनका यदि मनुष्य पालन करे तो वह उसे निकृष्टतम स्थान से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठा देने की शक्ति रखते हैं । गीता का अभ्यास करने वाला तो स्वयं तरन-तारन बन जाता है ।

अभयदाता श्रीराम

विधि—किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न होने पर इन चौपाइयों में से किसी एक या अधिक का जप करने से मनुष्य का भय समाप्त हो जाता है । प्रात:काल स्नान आदि करके एक चौकी पर श्रीरामजी की मूर्ति या चित्रपट रखकर उसका पंचोपचार—गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें । फिर किसी भी चौपाई का १०८ बार (एक माला) जप करें । यह जप लगातार ३१ दिनों तक करें ।

तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर

तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।

नंदोत्सव के बधाई गीत

भगवान के जन्म महोत्सव पर बधाइयां गाना भगवान की सेवा ही है अत: यह भक्ति का ही एक अंग है । बधाइयों में भगवान के प्राकट्य पर व्रजवासियों के आनंद का गायन किया जाता है ।

सीताजी को किसके शाप के कारण श्रीराम का वियोग सहना पड़ा...

सीताजी के जीवन में आने वाले विरह दु:ख का बीज उसी समय पड़ गया । इसी वैर भाव का बदला लेने के लिए वही तोता अयोध्या में धोबी के रूप में प्रकट हुआ और उसके लगाये लांछन के कारण सीताजी को वनवास भोगना पड़ा ।

भगवान श्रीराम का शब्दावतार ‘श्रीरामचरितमानस’

गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान शंकर, मारुतिनंदन हनुमान, पराम्बा पार्वतीजी, परब्रह्म भगवान श्रीराम और शेषावतार लक्ष्मणजी ने समय-समय पर अपना दर्शन देकर श्रीरामचरितमानस उनसे लिखवाया और भगवान श्रीराम ने ‘शब्दावतार’ के रूप में श्रीरामचरितमानस में प्रवेश किया ।
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