श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप
वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।
संत-कृपा से ईश्वरीय विधान भी बदल जाता है
भगवान समुद्र हैं तो संत मेघ हैं, भगवान चंदन हैं तो संत पवन हैं । समुद्र जल से भरा रहता है परंतु वह किसी के काम नहीं आता । परंतु बादल जब उसी समुद्र से जल उठा कर समय-समय पर बरसाते हैं तो सारे संसार में आनंद की लहर छा जाती है । इसी तरह परमात्मा सब जगह हैं; परंतु जब तक संतजन उस परमात्मा का सब जगह गुणगान नहीं करते, तब तक लोग उस परमात्मा को नहीं जान सकते । इसलिए मुझे लगता है राम से अधिक राम का दास (संत) है ।
सती और पार्वती जी के अज्ञानता के अभिनय से हुआ श्रीरामचरितमानस...
सती और पार्वती जी ने अपने अज्ञान का अभिनय कर भगवान शंकर के हृदय में छिपी अनमोल वस्तु ‘श्रीरामचरितमानस’ मानव के कल्याण के लिए संसार को दिला दी ।
श्रीराम के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की मदारी-वानर लीला
बालक श्रीराम, मदारी शंकर और वानररूप हनुमान
भगवान श्रीराम का सौ नामों का (शतनाम) स्तोत्र
त्रिलोकी में यदि श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘राम-नाम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं । यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड (६।३२-५१) में दिया गया है ।
निर्जला एकादशी : विशेष पूजा विधि एवं कथा
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है ।
क्या आपको स्वप्न में साँप दिखायी देते हैं?
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर
तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।
रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति
कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?
रामावतार की यज्ञ-सीताओं और गोपियों का क्या है सम्बन्ध ?
गोपियों का एक यूथ ‘रामावतार में यज्ञ में स्थापित सीताजी की प्रतिमाओं’ का था । कैसे यज्ञ-सीताएं गोपी रूप में अवतरित हुईं—वहीं प्रसंग इस ब्लॉग में दिया जा रहा है ।