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वेद में परमात्मा की स्तुति : पुरुष सूक्त

वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए ‘सूक्त’ रूपी अनेक मणियां हैं । सूक्त में देवी या देवता विशेष के ध्यान, पूजन तथा स्तुति का वर्णन होता है । इन सूक्तों के जप और पाठ से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिल जाती है, व्यक्ति पवित्र हो जाता है और उसे मनो अभिलाषित की प्राप्ति होती है । विराट् पुरुष के वैदिक स्तवन पुरुष सूक्त की बड़ी महिमा है । इसके नित्य पाठ से मनुष्य परम तत्त्व को जानने में सक्षम होता है और उसकी मेधा, प्रज्ञा और भक्ति की वृद्धि होती है ।

नेत्ररोग दूर करने की रामबाण उपासना ‘चाक्षुषी विद्या’

चाक्षुपोनिषद् सभी प्रकार के नेत्ररोगों को शीघ्र समाप्त करने वाला और नेत्रों को तेजयुक्त करने वाला चमत्कारी मन्त्र है । यह केवल पाठ करने से ही सिद्ध हो जाता है । इसे ‘चाक्षुपोनिषद्’, ‘चक्षुष्मती विद्या’, या ‘चाक्षुषी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।

पुराणों के सर्वश्रेष्ठ वक्ता : रोमहर्षण सूतजी

एक बार राजा पृथु ने यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ में देवराज इन्द्र को हवि का भाग देने के लिए सोम-रस निचोड़ा जा रहा था कि यज्ञ कराने वाले ऋषियों की गलती से इन्द्र के हवि में बृहस्पति का हवि (आहुति) मिल गया और उसे ही इन्द्र को अर्पण कर दिया गया । इसी हवि से अत्यन्त तेजस्वी सूतजी की उत्पत्ति हुई ।

बच्चे का मुण्डन संस्कार क्यों कराया जाता है ?

यह समय बच्चे के दांत निकलने का होता है इसके कारण शरीर में कई तरह की परेशानियां होती हैं । बच्चे का शरीर निर्बल होकर उसके बाल झड़ने लगते हैं । ऐसे समय में बच्चे का मुण्डन कराना बहुत लाभकारी होता है ।

शिव को अतिप्रिय रुद्राभिषेक और रुद्राष्टाध्यायी

भगवान शिव के मनभावन श्रावणमास में और शिवरात्रि पर प्राय: सभी शिवमन्दिरों में रुद्राभिषेक या रुद्री पाठ की बहार देखने को मिलती...

मन, इन्द्रिय और प्राणों में कौन है सबसे श्रेष्ठ?

शरीर में पंचप्राणों का स्थान व कार्य क्या है?

परमात्मा के वांग्मय-स्वरूप वेद

वेद सृष्टिक्रम की प्रथम वाणी व साक्षात् अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक भगवान के वांग्मय-स्वरूप हैं। वेद शब्दमय ईश्वरीय आदेश हैं। वेद शुद्ध ज्ञान का नाम है, जो परमात्मा से प्रकट हुआ है। जैसे माता-पिता अपनी संतान को शिक्षा देते हैं, वैसे ही जगत् के माता-पिता परमात्मा सृष्टि के आदि में मनुष्यों को वैदिक शिक्षा प्रदान करते हैं, जिससे वे भली-भांति अपनी जीवन-यात्रा पूर्ण कर सकें।