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हर प्रकार के शुभ फल देने वाली है बाणासुर कृत शिव-स्तुति

राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे । बाणासुर के ताण्डव से रीझ कर भगवान शंकर उसके नगररक्षक बन गए ।

भगवान व्यास कृत भगवती स्तोत्र

जो मनुष्य कहीं भी रह कर पवित्र भावना से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है, अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती (दुर्गा) सदा ही प्रसन्न रहती हैं ।

गजेन्द्न-मोक्ष के लिए भगवान का श्रीहरि अवतार

तृतीय मन्वन्तर में भगवान का ‘श्रीहरि’ अवतार हुआ । भगवान ने हरिमेधस ऋषि की पत्नी हरिणी में अवतार धारण किया और ‘श्रीहरि’ कहलाये । भगवान का यह अवतार अपने आर्त भक्त गजेन्द्र की ग्राह से रक्षा के लिए हुआ था । भगवान अपने पुकारने वालों की कैसे रक्षा करते हैं और उनके रक्षण में उनकी कैसी तत्परता रहती है—श्रीमद्भागवत का ‘गजेन्द्र-मोक्ष’ का प्रसंग यही बताता है ।

‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र

माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा कृष्णभक्ति में रचित अच्युताष्टकम्

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र है । जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय, रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है ।

भगवान शिव की मानस पूजा

मानस पूजा का प्रचलन उतना ही प्राचीन है जितना कि भगवान । मानस पूजा में मन के घोड़े दौड़ाने और कल्पनाओं की उड़ान भरने की पूरी छूट होती है । इसमें मनुष्य स्वर्गलोक की मन्दाकिनी के जल से अपने आराध्य को स्नान करा सकता है, कामधेनु के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण कर सकता है । ऐसी मानस पूजा से भक्त और भगवान को कितना संतोष मिलता होगा, यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता ।

श्रीकृष्ण-कृपा प्राप्ति के लिए पढ़े श्रीराधा चालीसा

श्रीराधा की स्तुति में गाई जाने वाली श्रीराधा चालीसा के पठन से श्रीराधा साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करती हैं, साथ ही श्रीकृष्ण भी अपना कृपाकटाक्ष साधक पर बरसा देते हैं । साथ ही साधक को व्रज-वृन्दावन में निवास का वर देते हैं ।

कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला ‘दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र’

भगवान शिव ने देवी से कहा—कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे बताइये । इस पर देवी ने कहा—‘कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाला सर्वश्रेष्ठ साधन है ‘अम्बास्तुति’ ।

भगवान का अमोघ अस्त्र : सुदर्शन चक्र

भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय आयुध सुदर्शन चक्र अत्यन्त वेगवान व जलती हुई अग्नि की तरह शोभायमान और समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला है । सुदर्शन चक्र का ध्यान करने से श्रीकृष्ण की प्राप्ति होती है और हमेशा के लिए भक्तों का भय दूर हो जाता है व जीवन संग्राम में विजय प्राप्त होती है ।

श्रीजीवगोस्वामी विरचित मधुर रस से पूर्ण ‘युगलाष्टक’

श्रीजीवगोस्वामी का श्रीप्रिया-प्रियतम युगलसरकार के चरणों में परम अनुराग था । रामरस अर्थात् श्रृंगाररस के आप उपासक थे । परम वैरागी श्रीजीव गोस्वामी की भक्ति-भावना का कोई पार नहीं है । इनकी सेवा में चारों ओर से अपार धन आता किन्तु वे उस धन को यमुनाजी में फेंक देते थे । श्रीजीव गोस्वामी मूर्धन्य विद्वान समझे जाते थे ।