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पितरों की शान्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है सर्वपितृ अमावस्या

श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक है । पितृ ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं है । केवल वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि पर या अमावस्या को, आसानी से सुलभ जल, तिल, जौ, कुशा और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध और तर्पण करें और गो-ग्रास देकर अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृ ऋण उतर जाता है ।

संत एकनाथ के घर श्राद्ध में पितरों का आगमन

नि:स्वार्थ सेवा करने का कोई फल नहीं है बल्कि मनुष्य स्वयं फलदाता हो जाता है । सच्चे वैष्णव के आगे तो देवता भी हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं । आवाहन करने पर पितर भी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भोजन ग्रहण कर लेते हैं ।

अपने वंशजों से क्या चाहते हैं पितर : पितृ गीत

विष्णुपुराण में पितरों के वे वाक्य हैं जो ‘पितृ गीत’ के नाम से जाने जाते हैं । इस गीत से पता लगता है कि पितरगण अपने वंशजों (संतानों) से पिण्ड-जल और नमस्कार आदि पाने के लिए कितने लालायित रहते हैं ।

श्राद्ध का प्रचलन कब शुरु हुआ ?

मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिण्डदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं । पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, लंतति, सौभाग्य, समृद्धि, रामनापूर्ति, वाक्सिद्धि, विद्या और सभी सुखों की प्राप्ति होती है । सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, भवन और सुख साधन श्राद्ध कर्ता को स्वयं ही सुलभ हो जाते हैं ।

पितरों का आभार व्यक्त करने की तिथि है अमावस्या

जिस घर में पितर प्रसन्न रहते हैं वहां परिवार में सुख-शान्ति, धन-सम्पत्ति व संतान भी श्रेष्ठ होती है । अत: कैसे करें अमावस्या तिथि पर पितरों को प्रसन्न ?

कौन हैं मनुष्य के कर्मों के साक्षी?

पितृलोक क्यों है प्रतीक्षालोक ?

गयासुर के बलिदान से ‘गया’ बन गया मोक्षतीर्थ

क्यों मिलती है गया में श्राद्ध से मुक्ति, गया में करते हैं स्वयं का भी श्राद्ध