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भगवान शंकर के स्वरूप में इतनी विचित्रता क्यों है ?

एक बार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा—‘प्रभो ! भगवान शंकर के बारे में मेरे कुछ संदेह हैं, जिनका निवारण आप कीजिए । इनका उत्तर जानने की मेरे मन में बहुत अधिक इच्छा जाग उठी है ।’ श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्ण से क्या प्रश्न किए और भगवान ने उसका क्या उत्तर दिया; यही इस लेख का विषय है ।

भगवान शंकर द्वारा पार्वती जी के पातिव्रत्य की परीक्षा

जिस प्रकार एक कुम्हार आंवे में से घड़े को निकाल कर उसे चारों तरफ से ठोक-बजा कर देखता है कि घड़ा पूरी तरह पक कर तैयार है या नहीं; उसी प्रकार परमात्मा किसी भी प्राणी को अपनाने से पहले उसकी परीक्षा कर देखते हैं कि यह जीव ‘मेरे द्वारा अपनाए जाने के लायक’ हुआ है या नहीं ? ऐसी परीक्षा जीव को ही नहीं वरन् भगवान की सहधर्मिणियों को भी देनी पड़ती है ।

भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल

भगवान शिव की पूजा ही सबसे बढ़कर है; क्योंकि मूल के सींचे जाने पर शाखा रूपी समस्त देवता स्वत: तृप्त हो जाते हैं । भगवान शिव के विधिवत् पूजन से जीवन में कभी दु:ख की अनुभूति नहीं होती है । अनिष्टकारक दुर्योगों में शिवलिंग के अभिषेक से भगवान आशुतोष की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है, सभी ग्रहजन्य बाधाएं शान्त हो जाती हैं, अपमृत्यु भाग जाती है और सभी प्रकार के सुखभोग प्राप्त हो जाते हैं ।

क्यों करते हैं भगवान अपने भक्तों की चाकरी ?

विद्यापति के लिखे पदों को सुनने के लिए भोलेनाथ ने धरा सेवक ‘उगना’ का रूप