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लक्ष्मी जी द्वारा भगवान नारायण का वरण

समुद्र-मंथन से तिरछे नेत्रों वाली, सुन्दरता की खान, पतली कमर वाली, सुवर्ण के समान रंग वाली, क्षीरसमुद्र के समान श्वेत साड़ी पहने...

अक्षय फल देने वाला लक्षवर्ति दान-व्रत

पुण्य के काम में धन व्यय करने से वह घटता नहीं बल्कि बढ़ता है । जैसे छोटे से बीज में महान वट वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार शुभ समय में किया गया छोटा-सा भी पुण्य महान फल देता है । लक्षवर्ति दान पूजा-विधि ।

लक्ष्मीजी ने गोमय को क्यों चुना अपना निवास-स्थान ?

भगवान श्रीकृष्ण को भी आश्चर्य होता था कि सभी प्रकार के ऐश्वर्य, ज्ञान, बल, ऋषि-मुनि, भक्त, राजागण व देवी-देवताओं का सर्वस्व समर्पण–ये सब मेरे पास एक ही साथ कैसे आ गए ? शायद ये मेरी गोसेवा का ही परिणाम है ।

श्रीमद् आदि शंकराचार्य द्वारा स्वर्ण की वर्षा

‘कनकधारा’ शब्द दो शब्दों कनक + धारा से मिलकर बना है । ‘कनक’ का अर्थ है स्वर्ण (सोना) और ‘धारा’ का अर्थ है ‘निरन्तर गिरना या धारा रूप में वर्षा होना । इसलिए ‘कनकधारा स्तोत्र’ का अर्थ हुआ वह स्तोत्र जिसके पाठ से लगातार स्वर्ण की वर्षा हुई ।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जलायें संध्या काल में दीपक

संध्या काल प्रकाश रूप परमात्मा से जुड़ने का समय है इसलिए इस समय न तो खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे अस्वस्थता आती है, न पढ़ना चाहिए क्योंकि पढ़ा हुआ याद नहीं रहता और न ही काम भावना रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय के बच्चे आसुरी गुणों के होते हैं ।

लक्ष्मीजी के स्वरूप में छिपा संदेश

लक्ष्मीजी के स्वरूप में उनका एक हाथ सदैव धन की वर्षा करता हुआ दिखाई देता है । इसका भाव है कि समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को सदैव सत्कार्यों और परोपकार के लिए मुक्त हस्त से दान देना चाहिए । दान से लक्ष्मीजी संतुष्ट और प्रसन्न होती हैं ।

अलक्ष्मी तथा लक्ष्मी का प्रादुर्भाव व उनके निवासयोग्य स्थान

समुद्रमंथन से काषायवस्त्रधारिणी, पिंगल केशवाली, लाल नेत्रों वाली, अत्यन्त बूढ़ी, दन्तहीन तथा चंचल जिह्वा को बाहर निकाले हुए, घट के समान पेट वाली एक ऐसी ज्येष्ठा नाम वाली देवी उत्पन्न हुईं, जिन्हें देखकर सारा संसार घबरा गया।

‘श्री-सूक्त’ : ऐश्वर्य और समृद्धिदायक

हे अग्निदेव! कभी नष्ट न होने वाली उन स्थिर लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें जो मुझे छोड़कर अन्यत्र नहीं जाने वाली हों, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, उत्तम ऐश्वर्य, गौएं, दासियां, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें। ऐश्वर्य और समृद्धि की कामना से इस 'श्री-सूक्त' के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों से हवन, पूजन अमोघ फलदायक है।