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भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य विभूतियां

गीता के दसवें अध्याय में भगवान की विभूतियों का बड़ा ही रोचक वर्णन किया गया है; किन्तु श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन से कहते हैं--’मेरी विभूतियों का अन्त नहीं है, यह तो मैंने तेरे लिए संक्षेप में कहा है’ (गीता १०।१९)।

गौ महिमा

हरे हरे तिनकों पर अमृत-घट छलकाती गौ माता,जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।तुम्ही धर्म हो, तुम्ही सत्य हो, पृथ्वी-सा सब...

भगवान श्रीकृष्ण की गो-सेवा

गोकुलेश गोविन्द प्रभु, त्रिभुवन के प्रतिपाल।गो-गोवर्धन-हेतु हरि, आपु बने गोपाल।।द्वापर में दुइ काज-हित, लियौ प्रभुहि अवतार।इक गो-सेवा, दूसरौ भूतल कौं उद्धार।। (श्रीराधाकृष्णजी...

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उद्धवजी को ज्ञानोपदेश

उद्धवजी ने भगवान से कहा—‘आपने थोड़े समय में मुझे अच्छा ज्ञान दिया है । मैं आपकी शरण में हूँ, मैं भी आपके साथ आपके धाम चलूंगा ।’ भगवान ने कहा—‘उद्धव ! तेरे हृदय में मैं चैतन्य रूप से स्थित हूँ । तू मेरा जहां ध्यान करेगा, वहीं मैं प्रकट हो जाऊंगा । तू यह भावना रखना कि श्रीकृष्ण मेरे साथ ही हैं ।’ भगवान अपनी चरण-पादुका उद्धवजी को देकर स्वधाम पधार गए ।

रामावतार की यज्ञ-सीताओं और गोपियों का क्या है सम्बन्ध ?

गोपियों का एक यूथ ‘रामावतार में यज्ञ में स्थापित सीताजी की प्रतिमाओं’ का था । कैसे यज्ञ-सीताएं गोपी रूप में अवतरित हुईं—वहीं प्रसंग इस ब्लॉग में दिया जा रहा है ।

भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला

भक्तों को दिए वरदानों और उनके मनोरथों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अनेक लीलाएं कीं । उनमें से एक अत्यंत रोचक लीला है ‘भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला’ ।

पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण

ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत--जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोकधाम है, वह नित्य है । गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के एकमात्र ईश्वर और पूर्ण ब्रह्म हैं, जो प्रकृति से परे हैं । ब्रह्मा, शंकर, महाविराट् और क्षुद्रविराट्--सभी उन परमब्रह्म परमात्मा का अंश हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण की दावाग्नि-पान लीला

भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत रहस्यमयी लीला है—‘दावाग्नि-पान लीला’ । भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला क्यों की और क्या है इसका रहस्य ? इस लीला का वर्णन श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के सत्रहवें अध्याय में किया गया है ।

कुब्जा प्रसंग द्वारा श्रीकृष्ण का संसार को संदेश

संसार में स्त्रियां कुंकुम-चंदनादि अंगराग लगाकर स्वयं को सज्जित करती हैं; किन्तु हजारों में कोई एक ही होती है जो भगवान को अंगराग लगाने की सोचती होगी और वह मनोभिलाषित अंगराग लगाने की सेवा भगवान तक पहुंच भी जाती है क्योंकि उसमें भक्ति-युक्त मन समाहित था । कुब्जा की सेवा ग्रहण करके भगवान प्रसन्न हुए और उस पर कृपा की ।

चंदन, हरिचंदन और गोपीचंदन

चंदन भगवान को बहुत प्रिय है । इसे महाभागवत और सर्वश्रेष्ठ वैष्णव माना जाता है; क्योंकि वह अपने शरीर का क्षय (घिस) कर भगवान के लिए सुगन्धित व शीतलता देने वाला लेप तैयार करता है और एक दिन इसी तरह क्षय होते-होते उसका अंत हो जाता है । उसके इसी त्याग पर रीझ कर भगवान उसे अपने मस्तक व श्रीअंग में धारण करते हैं ।