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गुरु कृपा रूपी रक्षा कवच

एक दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सरयू नदी में स्नान कर जब बाहर निकले तो हनुमान जी ने देखा कि प्रभु की कमर पर पांच अंगुलियों का एक नीला निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा है । आश्चर्यचकित होकर हनुमान जी सोचने लगे कि मेरे प्रभु की कमर पर इतनी गहरी चोट का निशान कहां से आया ? मेरे रहते हुए किसने प्रभु को चोट पहुंचाई है ।

रावण के मानस रोगों की हनुमान जी द्वारा चिकित्सा

अनेक बार बाहर से सुखी और समृद्ध लगने वाले लोग अंदर से अशान्ति की आग में जल रहे होते हैं । रावण के पास अकूत धन-वैभव और अपरिमित शक्ति थी; किंतु उसमें तमोगुण की अधिकता के कारण काम, क्रोध और अहंकार कूट-कूट कर भरा था। इस कारण उसके जीवन में सच्चे सुख का अभाव था ।

संकट मोचन और चतुर-शिरोमणि हनुमान जी

श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा--जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं ।

गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण

जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।

राम तें अधिक राम का दासा : हनुमानजी

हनुमानजी यद्यपि श्रीराम के दूत और दास के रूप में प्रसिद्ध हुए पर उन्होंने श्रीराम के चरणकमलों की भक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि दूत या सेवक का कार्य निंदनीय नहीं है; बल्कि वे सच्चे कर्मयोगी भक्त हैं । उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि ईश्वर की कृपा से जो कर्म करने को मिले, उसी में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए । मनुष्य को सच्चा कर्मयोगी बनना चाहिए ।

अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी

हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है ।

वात्सल्यमूर्ति हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज

हनुमानजी जब सूक्ष्म रूप धारण कर पाताललोक के द्वार के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उस वानर ने गर्जते हुए कहा—‘तुम कौन हो? सूक्ष्म रूप धारण कर तुम चोरी से द्वार के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते । मेरा नाम मकरध्वज है और मैं परम पराक्रमी बजरंगबली हनुमान का पुत्र हूँ ।’ हनुमानजी ने आश्चर्यचकित होकर कहा—‘हनुमान का पुत्र ? हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं । तुम उनके पुत्र कहां से आए ?’

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |

हनुमानजी की चुटकी सेवा

सेवा का साकार रूप हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये । इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है । हनुमानजी का बुद्धि-चातुर्य दर्शाती एक रोचक कथा ।

ब्रह्मचर्य है जिनकी पहचान, ऐसे महावीर हनुमान

‘जहां काम तहँ राम नहिं, जहां राम नहिं काम’ अर्थात् जिसके मन में काम भावना होती है वह श्रीराम की उपासना नहीं कर सकता और जो श्रीराम को भजता है, वहां काम ठहर नहीं सकता । हनुमानजी के तो रोम-रोम में राम बसे हैं और वे सारे संसार को ‘सीयराममय’ देखते थे । इसीलिए हनुमानजी को आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करना असम्भव नहीं था । हनुमानजी के अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत में कोई त्रुटि नहीं आई ।