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भक्ति हो तो भक्त सुधन्वा जैसी

सुधन्वा का कटा मस्तक ‘गोविन्द ! मुकुन्द ! हरि !’ पुकारता हुआ श्रीकृष्ण के चरणों पर जा गिरा । श्रीकृष्ण ने झट से उस सिर को दोनों हाथों में उठा लिया । उसी समय उस मुख से एक ज्योति निकली और सबके देखते श्रीकृष्ण के श्रीमुख में लीन हो गई ।

भगवत्सेवा से बढ़कर है संत-सेवा

गृहस्थ में रहकर यदि मनुष्य अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीविका उपार्जन करता हुआ भगवान के भजन के साथ संत-सेवा और दान-पुण्य आदि कर्म करता रहे तो इससे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं ।

नरसी मेहता को रासलीला का दर्शन

नरसी ने गाने में लिखा—तुमने मुझे जो कटु शब्द कहे, उनके कारण ही मैंने गोलोकधाम में गोपीनाथ का नृत्य देखा और धरती के भगवान ने मेरा आलिंगन किया ।

अपने इष्टदेव का निर्णय कैसे करें?

गोस्वामीजी के मन में श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण गोस्वामीजी ने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से प्रार्थना करते हुए कहा—‘यह मस्तक आपके सामने तभी नवेगा जब आप हाथ में धनुष बाण ले लोगे ।’

भगवान का पेट कब भरता है?

पूजन-कर्म करते समय रखें इस बात का ध्यान

जैसा भाव वैसे भगवान

वैष्णव वह है जो अपने दोषों को देखे, दूसरों के नहीं