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भगवान शिव का विशेष वाद्ययंत्र : डमरु

शिव जब डमरु बजा कर ताडंव नृत्य करते हैं तो प्रकृति आनंद से भर जाती है । और संसार के दु:ख को दूर कर नई शुरुआत का संदेश देते हैं । डमरु की धुल शिथिल पड़े मन को पुन: जाग्रत कर देती है ।

हर प्रकार के शुभ फल देने वाली है बाणासुर कृत शिव-स्तुति

राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे । बाणासुर के ताण्डव से रीझ कर भगवान शंकर उसके नगररक्षक बन गए ।

भगवान शिव की मानस पूजा

मानस पूजा का प्रचलन उतना ही प्राचीन है जितना कि भगवान । मानस पूजा में मन के घोड़े दौड़ाने और कल्पनाओं की उड़ान भरने की पूरी छूट होती है । इसमें मनुष्य स्वर्गलोक की मन्दाकिनी के जल से अपने आराध्य को स्नान करा सकता है, कामधेनु के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण कर सकता है । ऐसी मानस पूजा से भक्त और भगवान को कितना संतोष मिलता होगा, यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता ।

कलियुग में जाग्रत कामाख्या शक्ति पीठ

कामाख्या देवी योगमाया हैं, उन्हें महामाया भी कहते हैं, क्योंकि वे ज्ञानिजनों की भी चेतना को बलात् आकर्षित करके मोहरूपी गर्त में डाल देती हैं । शिव और शक्ति सदैव एक साथ रहते हैं । कामाख्या शक्ति पीठ के भैरव ‘उमानन्द शिव’ हैं । यहां देवी कामाख्या की पूजा-उपासना तन्त्रोक्त आगम-पद्धति से की जाती है ।

भगवान शिव ने ‘नटराज’ अवतार क्यों धारण किया ?

भगवान शिव नृत्य-विज्ञान के प्रवर्तक माने जाते हैं । वे सबका कल्याण करने वाले हैं, उन्होंने ‘नटराज’ स्वरूप (सुनर्तक नटावतार) क्यों ग्रहण किया ? इस सम्बन्ध में बहुत-सी कथाएं प्रचलित हैं । भगवान शिव के नटराज अवतार की विभिन्न कथाएं ।

भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले है शिव

भोले-भण्डारी भगवान शिव भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले के समान हैं । भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं । भगवान शिव की भक्त की लाज बचाने की भक्ति कथा ।

भगवान शिव के पंचमुख स्वरूप का क्या है रहस्य ?

जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं । ये ही भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां हैं ।

मार्कण्डेयजी को अमरत्व देने वाला भगवान शिव का मृत्युंजय स्तोत्र

भगवान शंकर की कृपा से मार्कण्डेयजी ने मृत्यु पर विजय और असीम आयु पाई । भगवान शंकर ने उन्हें कल्प के अंत तक अमर रहने और पुराण के आचार्य होने का वरदान दिया । मार्कण्डेयजी ने मार्कण्डेयपुराण का उपदेश किया और बहुत से प्रलय के दृश्य देखे हैं ।

भगवान शिव के पूजन के लिए स्तुति एवं प्रार्थनाएं

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में यदि भगवान शिव की पूजा के लिए समय न निकाल पाएं तो केवल मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करके भी भगवान आशुतोष शिव को प्रसन्न किया जा सकता है । जानें, भगवान शिव की कुछ स्तुतियां ।

कर्मों की गति न्यारी : जुआरी बन गया त्रिलोक पति

यमराज सोचने लगे—‘अब यह नरक नहीं जायगा, अब तो यह इन्द्र ही होगा क्योंकि इस बार तो इसने विधिवत् पूरा इन्द्रलोक ही दान कर दिया है ।’ उसी पुण्य के प्रभाव से वही जुआरी अगले जन्म में महान भक्त प्रह्लाद का पौत्र राजा बलि हुआ ।