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रावण के मानस रोगों की हनुमान जी द्वारा चिकित्सा

अनेक बार बाहर से सुखी और समृद्ध लगने वाले लोग अंदर से अशान्ति की आग में जल रहे होते हैं । रावण के पास अकूत धन-वैभव और अपरिमित शक्ति थी; किंतु उसमें तमोगुण की अधिकता के कारण काम, क्रोध और अहंकार कूट-कूट कर भरा था। इस कारण उसके जीवन में सच्चे सुख का अभाव था ।

संकट मोचन और चतुर-शिरोमणि हनुमान जी

श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा--जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं ।

हनुमानजी की चुटकी सेवा

सेवा का साकार रूप हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये । इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है । हनुमानजी का बुद्धि-चातुर्य दर्शाती एक रोचक कथा ।

हनुमानजी के गुरु कौन थे ?

ऐसा अद्भुत और आश्चर्यमय अध्ययन-अध्यापन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र आदि देवताओं और लोकपालों ने कभी देखा नहीं था । इस दृश्य को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और उनकी आंखें चौंधिया गयीं । वे सोचने लगे कि यह तो शौर्य, वीररस, धैर्य आदि सद्गुणों का साक्षात् स्वरूप आकाश में उपस्थित हो गया है ।

संकटनाश के लिए हनुमानजी की विशेष पूजा

किसी एक देवता की आराधना एक ही फल प्रदान करती है किन्तु हनुमानजी की आराधना बुद्धि,बल, कीर्ति, धीरता, निर्भीकता, आरोग्य, व वाक्यपटुता आदि सभी कुछ प्रदान कर देती है ।

श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप

वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।

त्रेतायुग की प्रतिज्ञा भगवान ने द्वापरयुग में पूरी की

हनुमानजी के मन में पूर्ण विश्वास था कि उनके आराध्य श्रीराम अपने भक्त की प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करेंगे। अत: वे वहां से चल दिए और रामदल में आकर श्रीरामजी से अपनी ‘प्रतिज्ञा’ और गिरिराजजी की ‘व्यथा’ निवेदन की। गिरिवर आप निराश न हों और मुझे क्षमा करें। द्वापरयुग के अंत में श्रीकृष्ण अवतार होगा, वे ही आपकी इच्छा पूर्ति करेंगे। जब इन्द्र की पूजा का खण्डन करके भगवान श्रीकृष्ण आपकी पूजा करवाएंगे तो इन्द्र कुपित होकर व्रज में उत्पात करने लगेगा। उस समय आप व्रजवासियों के रक्षक होंगे। मैं श्रीरामजी के पास जाकर विनती करुंगा। दीनबन्धु श्रीराम आपको दर्शन अवश्य देंगे।

श्रीहनुमान को भगवान श्रीराम का आलिंगनदान

भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के बुद्धिकौशल व पराक्रम को देखकर उन्हें अपना दुर्लभ आलिंगन प्रदान किया। भगवान श्रीराम हनुमानजी से कहते हैं--‘संसार में मुझ परमात्मा का आलिंगन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अत: तुम मेरे परम भक्त और प्रिय हो।’