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उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?

एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।

जन्म-मृत्यु के चक्र को मिटाने वाला श्रीहरि नाममाला स्तोत्र

हे ईश्वर ! आपकी नाममाला का उच्चारण करने की अभिलाषा करने मात्र से सम्पूर्ण पाप कांपने लग जाते हैं। प्राणियों के पाप-पुण्य के लेखक व यमराज के प्रधानमन्त्री श्रीचित्रगुप्त अपनी कलम को उठाते हुए आशंका करते हैं कि मैंने इस प्राणी का नाम तो पापियों की श्रेणी में लिख दिया है, परन्तु अब तो इसने नाममाला का आश्रय लिया है; अत: अब मुझे इसका नाम पापियों की श्रेणी से काट देना चाहिए; नहीं तो यमराजजी ही मुझ पर ही कहीं कुपित न हो जाएं क्योंकि यह मनुष्य तो अब अवश्य ही हरिधाम को जाएगा। श्रीहरिनाम माला का माहात्म्य इससे अधिक और क्या कहा जाए।