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भगवान श्रीराम ने लंका का सेतु क्यों भंग किया ?

लंका विजय के बहुत दिनों बाद एक बार भगवान श्रीराम को विभीषण की याद आई । उन्होंने सोचा—‘मैं विभीषण को लंका का राज्य दे आया हूँ, वह धर्मपूर्वक शासन कर भी रहा है या नहीं । राज्य के मद में कहीं वह कोई अधर्म का आचरण तो नहीं कर रहा है । मैं स्वयं लंका जाकर उसे देखूंगा और उपदेश करुंगा, जिससे उसका राज्य अनन्तकाल तक स्थायी रहे ।’

भूमि दोष का मनुष्य के विचारों पर प्रभाव

श्रीराम ने लक्ष्मण जी से कहा—‘यह वही भूमि है, जहां सुन्द और उपसुन्द आपस में युद्ध करके मरे थे; इसलिए इस भूमि में वैर के संस्कार है । भूमि दोष का असर मनुष्य के मन पर होता है ।’ अशुद्ध भूमि के कारण भी मनुष्य का मन भक्ति में नहीं लगता । जो भूमि पवित्र होती है, वहां भक्ति फलती-फूलती है ।

लक्ष्मण-गीता : लक्ष्मण और निषादराज गुह संवाद

कैकेयी ने श्रीराम को वनवास दिया, उस समय माता कौसल्या को अत्यंत दु:ख हुआ । लेकिन श्रीराम ने माता को समझाते हुए कहा—‘मां ! यह मेरे कर्मों का फल है । मैंने पूर्वजन्म में माता कैकेयी को दु:ख दिया था, उसके फलस्वरूप मुझे वनवास मिला है । मैंने परशुराम अवतार में जो किया, उसका फल रामावतार में मुझे भोगना ही है ।

भगवान श्रीराम का सौ नामों का (शतनाम) स्तोत्र

त्रिलोकी में यदि श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘राम-नाम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं । यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड (६।३२-५१) में दिया गया है ।

रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति

कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?

श्रीराम जिन पर शत्रु की स्त्रियां भी करती हैं नाज

महारानी मन्दोदरी के ज्ञान-चक्षु खुल गए । उन्हें समझ आ गया कि उनके प्रियतम पति लंकाधिपति रावण में चरित्र-बल नहीं था, इसी कारण वे अपने भाई, पुत्र तथा पौत्रों सहित मारे गए ।

श्रीरामनवमी व्रत व पूजन विधि

श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’

भगवान श्रीसीताराम का विवाहोपहार : कनक भवन

सीता-स्वयंवर के बाद जब श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विवाहित होकर अयोध्या लौटे तो महारानी कैकयी ने उस नव-निर्मित कनक भवन को अपनी बहू सीताजी को भेंट कर दिया । इसके बाद कनक भवन श्रीराम और सीताजी का आवास बन गया ।

हनुमानजी की चुटकी सेवा

सेवा का साकार रूप हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये । इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है । हनुमानजी का बुद्धि-चातुर्य दर्शाती एक रोचक कथा ।

श्रीराम : ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ’

भगवान श्रीराम के जन्मस्थान का दर्शन करने से प्रतिदिन सहस्त्रों कपिला गायों के दान का फल मिलता है । माता-पिता और गुरु-भक्ति का जो फल है, वह जन्मस्थान के दर्शन करने मात्र से मिल जाता है ।