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भगवान से विमुख होने पर किसी को सुख नहीं मिला

जब से गंगा ने श्रीकृष्ण चरणों को छोड़ा, तब से आज तक उनका बहना बंद नहीं हुआ, अर्थात् उनके जीवन में विश्राम नहीं आया । गंगा की पौराणिक कथा ।

भगवान श्रीकृष्ण और चंद्रावली सखी

ब्रज-सखी चंद्रावली भादप्रद शुक्ल की चौथ को हाथ में पूजा का थाल लेकर चंद्रमा के पूजन-दर्शन के लिए छत पर गई और चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए बोली—‘हे चंद्रदेवता ! हमारे ऊपर कृपा करो ।’ नारद जी ने जब चंद्रावली सखी को चौथ की रात्रि में चंद्रदर्शन करते हुए देखा तो उससे कहा—‘अरी बाबरी ! ये क्या कर रही है । तुझे व्यर्थ में ही कलंक लग जाएगा ।’

भगवान का भोग ग्रहण करना

भगवान के पूजन में विधि, मंत्र और सामग्री उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना की भाव । भक्त को जो कुछ भी सरलता से प्राप्त हो जाए, वही भक्तिपूर्वक सच्चे हृदय से अर्पण कर देने से भगवान संतुष्ट हो जाते हैं । चाहे कितनी भी उत्तम-से-उत्तम वस्तु भगवान को अर्पण की जाए, भाव बिना वे उसे स्वीकार नहीं करते हैं ।

आसुंओं का महत्व

लीला-पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला संसार को किसी-न-किसी ज्ञान से अवगत कराती है । ऐसी एक लीला है जिसमें भगवान ने अपनी प्राप्ति के दो साधनों से संसार को अवगत कराया है—१. भगवान के विरह में बहाए गए आंसू और २. शरणागति ।

भगवान श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप

भगवान ने अपने चतुर्भुज दिव्य रूप के दर्शन की दुर्लभता और उसकी महत्ता बताते हुए अर्जुन से कहा—‘मेरे इस रूप के दर्शन बड़े दुर्लभ हैं; मेरे इस रूप के दर्शन की इच्छा देवता भी करते हैं । मेरा यह चतुर्भुजरूप न वेद के अध्ययन से, न यज्ञ से, न दान से, न क्रिया से और न ही उग्र तपस्या से देखा जा सकता है । इस रूप के दर्शन उसी को हो सकते हैं जो मेरा अनन्य भक्त है और जिस पर मेरी पूर्ण कृपा है ।

भगवान के स्वरूप का ध्यान क्यों करना चाहिए ?

विषयों की ओर आसक्त मन को भगवान के चरणकमलों की ओर घुमाने का एक सहज उपाय है--उनके स्वरूप-सौन्दर्य की उपासना । मनुष्य स्वाभाविक ही सौन्दर्य की ओर खिंचता है । अत: मनुष्य नित्य भगवान के सुंदर स्वरूप की सौन्दर्योपासना से सहज ही उनकी ओर खिंच सकता है और असीम शांति प्राप्त कर सकता है ।

क्या भगवान को देखा जा सकता है ?

गीता के इस श्लोक में भगवान ने अनन्य भक्ति द्वारा सुलभ होने वाली तीन बातें कहीं हैं—१. भगवान को प्रत्यक्ष देखना, २. भगवान को जानना और ३. भगवान में प्रवेश करना अर्थात् उनमें एकाकार हो जाना । इन तीनों बातों के सुंदर उदाहरण हमें पुराणों में अनेक प्रसंगों में मिलते हैं ।

शरणागति

जानें, कैसी है भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम की शरणागतवत्सलता ?

श्रीराधा-उद्धव संवाद

श्रीराधा ने अत्यन्त गम्भीर स्वर में कहा--’जब तक वे निश्चिन्त होकर न आ सके, तब तक उनका न आना ही ठीक है । हम केवल उन्हें पाकर ही सुखी नहीं होती, उनके मुख पर मुस्कान देखकर ही सुखी होती हैं । हे उद्धव ! मुझे ऐसा लगता है कि मथुरा में कृष्ण कोई दूसरे होंगे, मेरे कृष्ण तो मेरे साथ ही रहते हैं, मुझे छोड़ कर वे गए ही नहीं हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का विशिष्ट श्रृंगार

श्रीअंग में कर्पूर-चंदन का लेप लगाए, कपोलों पर गेरु से सुन्दर पत्ररचना किए हुए, कानों तक फैले विशाल नेत्रों वाले, मकराकृत कुण्डल, नाक में नथबेसर, टोड़ी पर झिलमिल हीरा पहने व मुख पर मधुर मुसकान लिए श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण छोटे से कहे जाते हैं; पर उनका तनिक-सा दृष्टिपात करते ही समस्त लोकों की सृष्टि हो जाती है; इनका तनिक-सा सुयश सुनने से ही प्राणी परमपद को पा जाता है;