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यमयातना से मुक्ति देने वाली यमुनाजी

भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में प्रवेश और उसका दर्शन यमुनाजी की कृपा से सहज ही हो जाता है क्योंकि भगवान श्रीराधाकृष्ण यमुनाजी के तट पर ही रास विहार करते हैं । रास लीला में प्रवेश केवल गोपियों को है किन्तु कृष्णप्रिया श्रीयमुना की कृपा से यह अलौकिक फल भी पुष्टि मार्गीय वैष्णव प्राप्त कर लेता है कि उसे भगवान का दिव्य वेणुनाद भी सुनाई देने लगता है ।

भगवान श्रीकृष्ण का गोलोकधाम

गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर है। उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। यह भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से निर्मित है। उसका कोई बाह्य आधार नहीं है। अप्राकृत आकाश में स्थित इस श्रेष्ठ धाम को परमात्मा श्रीकृष्ण अपनी योगशक्ति से (बिना आधार के) वायु रूप से धारण करते हैं। वहां न काल की दाल गलती है और न ही माया का कोई वश चलता है फिर माया के बाल-बच्चे तो जा ही कैसे सकते हैं। यह केवल मंगल का धाम है जो समस्त लोकों में श्रेष्ठतम है।