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भगवान रंगनाथ की प्रेम-पुजारिन आण्डाल

जैसे ही आण्डाल ने मन्दिर में प्रवेश किया, वह भगवान की शेषशय्या पर चढ़ गयी । चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और लोगों के देखते-ही-देखते आण्डाल सबके सामने भगवान श्रीरंगनाथ में विलीन हो गयी ।

भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य पर प्रकृति का उल्लासपूर्ण स्वागत

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही काल, दिशा और देश के नियन्ता हैं, इसलिए आज ‘काल’ की ही भांति ‘दिशा’ और ‘देश’ भी समस्त सद्गुणों से सुशोभित हो रहे हैं। दसों दिशाएँ प्रसन्न हो गयीं। सभी दिक्पाल (दिशाओं के अधिपति) आनन्दपूर्ण हृदय से अपने स्वामी के शुभागमन का अभिनन्दन करने के लिए दिग्वधुओं (अपनी पत्नियों) के साथ हाथों में अर्घ्यपात्र लेकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे। गगन में तारे इस प्रकार जगमगा रहे थे मानों अनन्त पात्रों में हीरों के पुष्प भरकर अपने स्वामी को अर्पण करने की इच्छा से खड़े हों। भगवान श्रीकृष्ण के मंगल आगमन से सभी देश आनन्द-मंगल से भर गए।