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गायत्री मन्त्र के द्रष्टा महर्षि विश्वामित्र

महर्षि विश्वामित्र के समान पुरुषार्थी ऋषि शायद ही कोई और हो l वे अपनी सच्ची लगन, पुरुषार्थ और तपस्या के बल पर क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने । ब्रह्माजी ने बड़े आदर से इन्हें ब्रह्मर्षि पद प्रदान किया । सप्तर्षियों में अग्रगण्य हुए और वेदमाता गायत्री के द्रष्टा ऋषि हुए ।

गायत्री मन्त्र के जप के नियम

यज्ञोपवीत धारण करना, गुरु दीक्षा लेना और विधिवत् मन्त्र ग्रहण करना—शास्त्रों में तीन बातें गायत्री उपासना में आवश्यक और लक्ष्य तक पहुंचने में बड़ी सहायक मानी गई हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इनके बिना गायत्री साधना नहीं हो सकती है । ईश्वर की वाणी या वेद की ऋचा को अपनाने में किसी पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हो सकता है ।

गायत्री मन्त्र के चमत्कारी चौबीस अक्षर

गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी। गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम्।। (शंखस्मृति) अर्थात्--‘गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों का नाश करने वाली है। गायत्री से...