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श्रीगणेश आराधना दूर करती है दुर्गुण और दुर्भावना

श्रीगणेश ने अपने आठ प्रमुख अवतारों में जिन असुरों का वध किया है उनके नामों को देखने से स्पष्ट होता है कि श्रीगणेश मनुष्य के अंत:करण में छिपे उसके वास्तविक शत्रुओं—काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद आदि का नाश करते हैं ।

श्रीगणेश का वाहन मूषक

श्रीगणेश मूषकवाहन व मूषक-चिह्न की ध्वजा वाले हैं। श्रीगणेश का शरीर विशालकाय है किन्तु उनका वाहन मूषक बहुत छोटा होता है। ऊपरी तौर पर यह बात देखने में बहुत हास्यास्पद लगती है पर इसका बहुत गहन अर्थ है। श्रीगणेश परमब्रह्म की ज्ञानमयी व वांग्यमयी शक्ति का रूप हैं। परमात्मा न तो हल्का है न भारी। वह अणु से भी अणु हैं और महान से भी महान हैं। उसका सभी शरीरों में वास है। प्रत्येक देवता के वाहन-आयुध आदि देवता का ही तेजरूप होता है।

श्रीगणपति अथर्वशीर्ष : मन-मस्तिष्क को शांत रखने की विद्या

अथर्वशीर्ष शब्द में अ+थर्व+शीर्ष इन शब्दों का समावेश है। ‘अ’ अर्थात् अभाव, ‘थर्व’ अर्थात् चंचल एवं ‘शीर्ष’ अर्थात् मस्तिष्क--चंचलता रहित मस्तिष्क अर्थात् शांत मस्तिष्क। गणपति अथर्वशीर्ष मन-मस्तिष्क को शांत रखने की विद्या है।

गणेशजी का परिवार

गणेशजी की प्रसन्नता के लिए उनके साथ उनके परिवार---पत्नी और पुत्रों का चिन्तन करने से सर्वसिद्धियों का फल मिलता है। अज्ञान और भ्रान्तियों का नाश होता है तथा समस्त मंगल अपने आप उपस्थित हो जाते हैं।