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ठाकुर बांकेबिहारी जी के स्वरूप की विशेषता

श्रीवृंदावन धाम में विराजित ठाकुर बांकेबिहारी, जिनकी हर बात है निराली; जैसा उनका नाम निराला; वैसा ही उनका रूप-स्वरूप भी अत्यंत निराला...

अयोध्या का राजसिंहासन और रावण

अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट रघु ने ही ‘रघुकुल’ या ‘रघुवंश’ की नींव रखी थी । रघुकुल अपने सत्य, तप, मर्यादा, वचन पालन, चरित्र व शौर्य के लिए जाना जाता है । इसी वंश में भागीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ और श्रीराम जैसे राजा हुए । रावण प्रकाण्ड विद्वान और त्रिकालदर्शी था । उसे पता था कि उसकी मृत्यु अयोध्यापति श्रीराम के हाथों होगी । अत: अयोध्या का विनाश करना उसका चिरकाल से संकल्प था ।

भगवान विट्ठल और संत तुकाराम

भक्त के हृदय की करुण पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती, वह चाहे कितनी भी धीमी क्यों न हो, त्रिभुवन को भेदकर वह भगवान के कानों में प्रवेश कर ही जाती है और भगवान के हृदय को उसी क्षण द्रवित कर देती है । ऐसा ही एक प्रसंग है—भगवान विट्ठल और संत तुकाराम का ।

भगवान से विमुख होने पर किसी को सुख नहीं मिला

जब से गंगा ने श्रीकृष्ण चरणों को छोड़ा, तब से आज तक उनका बहना बंद नहीं हुआ, अर्थात् उनके जीवन में विश्राम नहीं आया । गंगा की पौराणिक कथा ।

राधा तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन

राधा श्रीकृष्ण की भक्ता हैं, प्रेमिका हैं, उपासिका-आराधिका हैं । श्रीराधा श्रीकृष्ण की शक्ति हैं, श्रीराधा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं । लेकिन श्रीराधा को यह गौरव कैसे प्राप्त हुआ, इससे सम्बन्धित एक प्रसंग ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है ।

भगवान श्रीकृष्ण और चंद्रावली सखी

ब्रज-सखी चंद्रावली भादप्रद शुक्ल की चौथ को हाथ में पूजा का थाल लेकर चंद्रमा के पूजन-दर्शन के लिए छत पर गई और चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए बोली—‘हे चंद्रदेवता ! हमारे ऊपर कृपा करो ।’ नारद जी ने जब चंद्रावली सखी को चौथ की रात्रि में चंद्रदर्शन करते हुए देखा तो उससे कहा—‘अरी बाबरी ! ये क्या कर रही है । तुझे व्यर्थ में ही कलंक लग जाएगा ।’