सच्चा ज्ञान : अष्टावक्र और राजा जनक संवाद

राजा जनक को ‘ज्ञान’ देकर अष्टावक्रजी चले गए और उस ज्ञान को धारण कर राजा जनक ‘देही’ से ‘विदेही’ बन गए । राजा जनक और ऋषि अष्टावक्र के बीच का संवाद ‘अष्टावक्र गीता’ के नाम से जाना जाता है ।

कैसे शुरु हुई होली मनाने की परम्परा और क्या है इसके...

हिन्दू धर्म में खेत से आए नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा है । उस अन्न को ‘होला’ कहते हैं । अत: फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को उपले आदि एकत्र कर उसमें यज्ञ की तरह अग्नि स्थापित की जाती है, पूजन करके हवन के चरू के रूप में जौ, गेहूँ, चने की बालियों को आहुति के रूप में होली की ज्वाला में सेकते हैं ।

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?

जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव, सभी तिलकधारी हैं, तो आराधक कैसे बगैर तिलक के रह सकता है ? वैष्णव खड़े तिलक (उर्ध्वपुण्ड्र) की दो समानान्तर रेखाओं को श्रीमन्नारायण के दोनों चरणकमल मानते हैं । उनका विश्वास है कि मस्तक पर तिलक रूपी चरणकमल धारण करने से मृत्यु के बाद उन्हें उर्ध्वगति (विष्णुलोक) की प्राप्ति होगी ।

‘राम’ नाम लिखे तुलसीपत्र की महिमा

सबका पालनहार एक ‘राम’ ही है । संसारी प्राणी तो दान ही दे सकते हैं; परन्तु मनुष्य की जन्म-जन्म की भूख-प्यास नहीं मिटा सकते हैं । वह तो उस दाता के देने से ही मिटेगी । इसलिए मांगना है तो मनुष्य को भगवान से ही मांगना चाहिए, अन्य किसी से मांगने पर संसार के अभाव मिटने वाले नहीं हैं । लेकिन मनुष्य सोचता है कि मैं कमाता हूँ, मैं ही सारे परिवार का पेट भरता हूँ । यह सोचना गलत है । इसलिए देने वाले के नेत्र सदैव नीचे और लेने वाले के ऊपर होते हैं ।

अन्य देवताओं की तरह ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं की जाती...

भगवान ब्रह्मा त्रिदेवों में सबसे पहले आते हैं । ये लोकपितामह होने के कारण सभी के कल्याण की कामनाकरते हैं क्योंकि सभी इनकी प्रजा हैं । देवी सावित्री और सरस्वतीजी के अधिष्ठाता होने के कारण ज्ञान, विद्या व समस्त मंगलमयी वस्तुओं की प्राप्ति के लिए इनकी आराधना बहुत फलदायी है । वे ही ‘विधाता’ कहलाते हैं ।

सुख-दु:ख और भगवत्कृपा

दु:ख के समय का कोई साथी नहीं होता बल्कि लोग तरह-तरह की बातें बनाकर दु:ख को और बढ़ा देते हैं । ऐसी स्थिति में यह याद रखें कि निन्दा करने वाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते । ढूंढ़कर हमारे जीवन के एक-एक दाग को साफ करना चाहते हैं । वे तो हमारे बड़े उपकारी हैं जो हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं ।

प्रकृति को समर्पित सबसे अनूठा त्यौहार : छठ महापर्व

चढ़ते (उदय होते) व उतरते (अस्त होते) हुए सूर्य—इन दोनों को प्रणाम करने का अर्थ है कि हम समभाव से किसी के उत्कर्ष और अपकर्ष में साथ बने रहते हैं । सूर्य को प्रणाम का अर्थ है अस्त होते यानी बुजुर्गों को सम्मान देने का भाव । सूर्यदेव हमे उष्मा, उर्जा व जीवन में उल्लास प्रदान करते हैं; इसलिए सूर्य को दिए जाने वाले अर्घ्य से हम अपने अंदर की जीवन-अग्नि को जीवित रखते हैं ।

सूर्य और चन्द्र ग्रहण : क्या करें, क्या न करें

ग्रहणकाल में जो अशुद्ध परमाणु होते हैं, कुशा डालने से डाली हुई वस्तु पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता है । इसलिए ग्रहण में जल और खाद्य-पदार्थों पर कुशा डालने से वे दूषित नहीं होते हैं । शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है ।

व्रत की थाली में 56 भोग

उपवास सबसे बढ़िया और मजेदार काम है, इससे एक तो रोज की दाल-रोटी से छुट्टी मिल जाती है; दूसरे फलाहार के नाम पर नये-नये पकवान खाने को मिल जाते हैं । हमारे देश में इतने फल, कंद और मसाले होते हैं कि फलाहारी खाने का ही एक छोटा शब्दकोश बन जाए ।

धार्मिक अनुष्ठान में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का अर्थ

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं, जैसे—स्वस्तिवाचन, पवित्री धारण, आचमन, शिखा-बंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन, संकल्प, यज्ञोपवीत बदलना, चंदन धारण, रक्षा सूत्र आदि । जानतें हैं इन सबका क्या है आध्यात्मिक अर्थ और महत्व ।