बृज-सम और कोउ नहिं धाम।
या ब्रज में परमेसरहू के सुधरे सुंदर नाम।।
कृष्न नाम यह सुन्यो गर्ग तें, कान्ह कान्ह कहि बोलैं।
बालकेलि-रस मगन भये सब, आनंद-सिंधु कलोलैं।। (नागरीदासजी)

व्रज में प्रेम और माधुर्यभक्ति है प्रधान

व्रज में माधुर्य का ही आधिपत्य है, उसी का बोलबाला है। क्या बच्चा, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या पुरुष—यहां तक कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, लता-कुंज, गिरि-कन्दरा, नदी-सरोवर—सभी का श्रीकृष्ण के प्रति अनोखा अनुराग व लगाव है।

धनि बृन्दावन धाम है, धनि बृन्दावन नाम।
धनि बृन्दावन रसिकजन, सुमिरत राधेश्याम।।
बृन्दावन सो वन नहीं, नंदगाम सो गाम।
बंशीवट सो वट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम।।

परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण के नाम भी व्रज के माधुर्य की चाशनी में पगे बिना न रह सके। व्रज में उन्हें सखा या बालभाव से अटपटे नामों से पुकारा जाता है। ऐसे अटपटे नाम लेने का अधिकार भी केवल व्रजवासियों को है। व्रज के बाहर तो परमात्मा की मर्यादा का पालन किया जाता है। गर्गाचार्यजी ने पूर्ण पुरुषोत्तम परब्रह्म का नाम ‘कृष्ण’ रखा पर व्रजवासियों ने इनके अनन्त अटपटे नाम रख दिए।

श्रीकृष्ण किस कारण किन-किन नामों से जाने जाते है

—सबके मन को अपनी ओर आकर्षित करने के कारण श्रीकृष्ण व चन्द्रवंश के भूषण होने से श्रीकृष्णचन्द्र कहलाते हैं।

—व्रजवासियों के जीवनधन, प्राण व सर्वस्व होने से श्रीकृष्ण को ब्रजेन्द्रनन्दन, ब्रजलोचन, ब्रजरमन, ब्रजउत्सव, ब्रजनाथ, ब्रजजीवन, ब्रजबल्लभ, ब्रजकिशोर, ब्रजमोहन, ब्रजभूषण, ब्रजनायक, ब्रजचंद, ब्रजनागर, ब्रजछैल-छबीले, ब्रजवर, ब्रजआनंद और ब्रजलाल कहा जाता है। व्रज की ठकुरानी श्रीराधा तो व्रज के ठाकुर श्रीकृष्ण कहलाते हैं।

ब्रजलोचन, ब्रजरमन, मनोहर, ब्रजउत्सव, ब्रजनाथ।
ब्रजजीवन, ब्रजबल्लभ सबके, ब्रजकिशोर, सुभगाथ।।
ब्रजमोहन, ब्रजभूषण, सोहन, ब्रजनायक, ब्रजचंद।
ब्रजनागर, ब्रजछैल, छबीले, ब्रजवर, श्रीनँदनंद।।
ब्रज-आनंद, ब्रजदूलह नितहिं, अति सुंदर ब्रजलाल।
ब्रज गउवन के पाछे आछे, सोहत ब्रजगोपाल।।
ब्रज-सम्बन्धी नाम लेत ये, ब्रज की लीला गावै।
‘नागरिदासहिं’ मुरलीबारो, ब्रज को ठाकुर भावैं।। (नागरीदासजी)

—नन्द-यशोदाजी के पुत्र होने से वे यशोदानन्दन, नन्दलाल, नन्दनन्दन नन्दकिशोर कहलाते हैं। देवकी के पुत्र होने से देवकीनन्दन कहलाते है

—यशोदाजी श्रीकृष्ण को लाला, नीलमणि, कान्हा, कनुआ कहती हैं तो सखा कन्हैया कहकर पुकारते हैं। आज भी व्रजवासी बालभाव से इन्हें लाला या गुपाललाल या गोपाल कहकर पुकारते हैं।

—यादव वंश में पैदा होने के कारण यदुवीरयदुनन्दन कहलाते हैं।

—नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण होने से सांवरा, श्यामसुन्दर, श्याम, सांवलिया सेठघनश्याम कहलाते हैं।

—माता द्वारा रस्सी से कमर में बांधे जाने से दामोदर कहलाते हैं।

—व्रज की गौओं के सेवक होने के कारण उनके पीछे-पीछे चलने से गोपाल, व्रजगोपाल और गोविन्द कहलाते हैं।

—गोपियों व भक्तों के मन व चित्त को चुराने के कारण चितचोर हैं।

—दधि और माखन की चोरी के कारण माखनचोर, दधिचोर व माखनप्रेमी होने से नवनीतप्रिय कहे गए।

—श्रीकृष्ण ने गोपियों के कात्यायनी व्रत में त्रुटि को दूर करने के लिए उनके वस्त्रों का अपहरण किया तो चीरचोर, व चोरजारशिरोमणि कहलाए।

—गोपियों के जीवनप्राण होने से वे गोपीनाथ व गोपीबल्लभ कहलाते हैं।
—श्रीराधा के पति होने से श्रीराधारमन, श्रीराधावल्लभ, राधेश्याम, युगलकिशोर, किशोरीरमणराधाकांत कहे जाते हैं। राधारूपी चन्द्र के चकोर होने से राधाचन्द्रचकोर कहे जाते हैं।

—श्रीवृन्दावन व गोकुल के अधिपति होने से श्रीवृन्दावनचन्द्र और गोकुलचन्द्रमाजी हैं।

—रासलीला के अधिपति होने से रासबिहारी, रसिकबिहारी, कुंजबिहारी व रासरचैया कहे जाते हैं।

—अत्यधिक सुन्दर होने से मनोहर, सोहन कहलाते हैं। नवकिशोर होने से छैलबिहारी, रसिया, चिकनियां, नवलकिशोर, नटवरनागर; वन में विचरण करने से वनवारी, व वनमाला धारण करने से वनमालाधारी; मोरमुकुट धारण करने के कारण मोरमुकुटधारी कहलाते हैं।

—बांसुरी को हर समय अपने अधरों पर रखने के कारण भक्तों ने उन्हें मुरलीमनोहर, मुरलीधर, वंशीधर बंसीबजैया कहा।

—गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा ऊंगली पर धारण करने के कारण श्रीकृष्ण के गोवर्धननाथ, गिरवर, गिरिधारी, गिरिराजधरण नाम प्रचलित हैं।

—कामदेव के गर्व को चूर करने के कारण मदनमोहनमन्मथमन्मथ कहलाते हैं।

—केशी दैत्य को मारने के कारण श्रीकृष्ण केशव कहे जाते हैं।

—वृन्दावन में श्रीकृष्ण को त्रिभंगी मुद्रा में खड़े होने से बांकेबिहारीशाहबिहारी के नाम से पुकारा जाता है।

टेढ़े ही मंदिर टेढ़े ही बंदर
टेढ़े ही खम्भ कौ शाहबिहारी।
टेढ़ौ ही मोर पखा सिर साजत
टेढ़ीहि चाल चलै वनवारी।
टेढ़ि हि फैंट कसी कटि में
लटुआ लटकें लट घूँघर वारी।
टेढ़ीहि लाठी कूँ हाथ लिए
टैढ़ौ खड़ौ मेरौ बाँकेबिहारी।

—व्रज में श्रीकृष्ण का एक नाम अटलबिहारी भी है। इससे सम्बन्धित एक मधुरलीला श्रीगोरे दाऊजी मन्दिर (श्रीअटलबिहारी मन्दिर) के सम्बन्ध में कही जाती है–अटल वन में भगवान श्रीकृष्ण बलदाऊजी व सखाओं के साथ गाय चराने जाते थे और वहां कदम्ब के वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करते थे। एक दिन बलदेवजी गाय चराने नहीं आये और सखा भी गाय चराते हुए दूर निकल गये। कदम्ब के वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण अकेले हैं, यह बात श्रीराधाजी की सखियों को पता चल गई। ललिता सखी के कहने पर श्रीराधा ने गोरे बलदाऊजी का भेष धारण किया और श्रीकृष्ण से मिलने पहुंच गयीं। श्रीराधा ने भेष तो बदल लिया पर नाक की नथ उतारना भूल गयीं। जब दाऊजी के भेष में श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से कहा–’मेरा इंतजार किये बगैर मुझे छोड़कर वन में आ गये।’ तब श्रीकृष्ण तो श्रीराधा को पहचान गये और उन्होंने गोरे दाऊजी (श्रीराधा) का हाथ पकड़कर कहा–’भैया, कुछ देर तो मेरे पास बैठो।’ पोल खुल जाने के डर से जब किशोरीजी जाने लगीं, तब श्रीकृष्ण ने कहा–’मेरी प्रिया, तुम कहां जाती हो, अब तो इस वन में ही स्थापित हो जाओ और मुझे रोजाना दर्शन देती रहना।’ इस पर राधाजी ने कहा–’आपके बिना इस वन में मैं कैसे रहूंगी, आपको भी यहीं अटल आसन लगाना होगा।’ इस प्रकार श्रीकृष्ण का अटलबिहारी व मन्दिर का गोरे दाऊजी नाम पड़ा।

—दही का दान मांगने के कारण गोपियां प्रेम से गुस्सा दिखलाने के भाव से श्रीकृष्ण को ‘लँगर’ और ‘ढीठ’ व कालिय नाग का दमन करने के कारण नागनथैया कहकर भी सम्बोधित करती थीं।

यह है व्रज में श्रीकृष्ण का माधुर्यभाव जो रूखे-सूखे हृदय को भी प्रेमरस से सराबोर कर देता है।

प्रभु तेरे नाम हैं हजार कौन नाम लिखूं पत्रिका।
दिन-दिन बदले है ठांव, कौन ग्राम लिखूं मैं पत्रिका।।
पूर्व में जगन्नाथ, पश्चिम में द्वारकानाथ।
दक्षिण में रंगनाथ, उत्तर में बद्रीनाथ।
मध्य में विराजें श्रीनाथ, कौन गांव लिखूं मैं पत्रिका।।
कोई श्रीनाथ कहै कोई नवनीतलाल।
कोई कहै गोवर्धननाथ, कौन नाम लिखूं पत्रिका।।
कोई मथुरानाथ कहै कोई विट्ठलनाथ कहै।
कोई कहै द्वारकानाथ, कौन नाम लिखूं मैं पत्रिका।।
कोई गोकुलनाथ कहै कोई गोकुलचन्द कहै।
कोई कहै बालकृष्ण, कौन नाम लिखूं मैं पत्रिका।।
कोई मदनमोहन कहै, कोई नटवरलाल कहै।
कोई कहै मुकुन्दलाल, कौन नाम लिखूं मैं पत्रिका।।
कोई अद्भुतराय कहै, कोई कल्याणराय।
कोई कहै रणछोड़राय, कौन नाम लिखूं मैं पत्रिका।।
बल्लभ दुलारे हो विट्ठल के प्यारे हो।
मुखिया प्राण अधार, कौन नाम लिखूं मैं पत्रिका।। (नानालाल मुखिया)

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