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गणेशजी की प्रसन्नता के लिए उनके साथ उनके परिवार—पत्नी और पुत्रों का चिन्तन करने से सर्वसिद्धियों का फल मिलता है। अज्ञान और भ्रान्तियों का नाश होता है तथा समस्त मंगल अपने आप उपस्थित हो जाते हैं।

मुद्गलपुराण में शिवजी ने गणेशजी की स्तुति करते हुये उनके परिवार का वर्णन किया है–

सिद्धिबुद्धिपतिं वन्दे ब्रह्मणस्पतिसंज्ञितम्।
मांगल्येशं सर्वपूज्यं विघ्नानांनायकं परम्।।

श्रीगणेशजी सिद्धि और बुद्धि के पति हैं। जो उनकी उपासना करता है उन्हें वे अपने कार्य में सिद्धि (पूर्णता) प्रदान करते हैं साथ ही बुद्धि (ज्ञान शक्ति) देते हैं। श्रीगणेश के वाम भाग में सिद्धि और दक्षिण भाग में बुद्धि की संस्थिति बतायी गयी है।
शिवपुराण में गणेशजी के सिद्धि बुद्धि के साथ विवाह का प्रसंग वर्णित है। एक बार शंकरजी और पार्वतीजी ने विचार किया कि हमारे दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय अब विवाह योग्य हो गये हैं। दोनों को बुलाकर शंकरजी ने कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा उसका ही विवाह सबसे पहले होगा। कार्तिकेयजी पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिये पर बुद्धिमान गणेशजी ने माता पिता को आसन पर बिठाकर उनकी सात बार परिक्रमा की।

वेदों में भी कहा गया है, ‘जो माता पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसको पृथ्वी की प्रदक्षिणा का फल मिलता है‘।

इस तरह गणेशजी ने अपने विवाह की योग्यता प्रमाणित की। प्रजापति विश्वरूप को जब इसका पता चला तो वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि का विवाह गणेशजी से कर दिया। गणेशजी के पत्नी सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हुए। गणेशजी के परिवार के स्मरण-चिन्तन से सिद्धि, बुद्धि, क्षेम और लाभ की सहज प्राप्ति होती है।


पूजन की थाली में मंगलस्वरूप श्रीगणपति का स्वास्तिक-चिह्न बनाकर उसके अगल-बगल में दो-दो खड़ी रेखाएँ बना देते हैं। स्वास्तिक-चिह्न श्रीगणपति का स्वरूप है और दो-दो रेखाएँ उनकी पत्नी सिद्धि बुद्धि एवं पुत्रस्वरूप लाभ और क्षेम हैं।

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