चौबीस देवताओं के चौबीस गायत्री मन्त्र
देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।
गायत्री मन्त्र के चमत्कारी चौबीस अक्षर
गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी।
गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम्।। (शंखस्मृति)
अर्थात्--‘गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों का नाश करने वाली है। गायत्री से...
श्रीराम के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की मदारी-वानर लीला
बालक श्रीराम, मदारी शंकर और वानररूप हनुमान
राम हैं वैद्य और राम-नाम है रामबाण औषधि
त्रेता में केवल एक रावण था, लेकिन कलियुग में अनगिनत बीमारियां रूपी रावण हैं । उन रावणों पर विजय पाने के लिए राम की शक्ति की आवश्यकता है और वह शक्ति ‘रामनाम’ में निहित है क्योंकि त्रेता में स्वधामगमन से पहले श्रीराम ने अपनी सारी शक्तियां अपने नाम में संन्निहित कर दी थीं ।
सहस्त्रनाम-तुल्य ‘श्रीराम’-नाम और भगवान श्रीराम के १०८ नाम
भगवान के सहस्त्रनामों के समान फलदायी ‘श्रीराम’ के १०८ नाम
अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम
हनुमानजी के अष्टोत्तरशतनाम आज के भौतिक युग में मनुष्य के कमजोर होते हुए विश्वास को पुर्नजीवित करने में संजीवनी बूटी का काम करेंगे और विभिन्न संतापों से अशान्त मन को शान्त करने में सहायक होंगे।
श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप
वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।
क्या आपको स्वप्न में साँप दिखायी देते हैं?
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।
श्रीहनुमानजी का राम-नाममय विग्रह
श्रीरामदूत हनुमानजी का विग्रह राम-नाममय है। उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है। उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध--सब राम-नाम से बने हैं। उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य-ही-आराध्य हैं। उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से कहते हैं कि आपका नाम जप करते हुए मेरा मन कभी तृप्त नहीं होता--’त्वन्नामजपतो राम न तृप्यते मनो मम।’ राम मन्त्र की एक लाख आवृत्तियों के पुरश्चरण के बाद ही हनुमानजी सीताजी की खोज के लिए लंकापुरी गये थे और इस कार्य में उन्हें सफलता भी मिली।
भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है,
उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है।
गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...