durga devi

मन्त्राणां मातृका देवी शब्दानां ज्ञानरूपिणी।
ज्ञानानां चिन्मयतीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी।
यस्यां परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता।।
तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातिनीम्।
नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम्।। (श्रीदेव्यथर्वशीर्षम्)

अर्थात्–सब मन्त्रों में ‘मातृका’ (मूलाक्षर) रूप से रहने वाली, शब्दों में ज्ञान (अर्थ) रूप से रहने वाली, ज्ञानों में चिन्मयातीता, शून्यों में शून्यसाक्षिणी तथा जिनसे और कुछ भी श्रेष्ठ नहीं हैं, वे ही दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हैं। उन दुर्विज्ञेय (जिसको जानना कठिन हो), दुराचार का नाश करने वाली और संसार-सागर से तारने वाली दुर्गा देवी को संसार से डरा हुआ मैं नमस्कार करता हूँ।

मन्त्र शक्ति

अनादिकाल से संसार-सागर में पड़े हुए जीव चाहते हैं कि उन्हें कभी क्लेश न हो और संसार-चक्र से मुक्ति मिले। क्लेशनाश व बंधन से मुक्ति के लिए मनुष्य अपने स्तर पर अनेक प्रयास भी करते हैं, परन्तु मनुष्य की शक्ति सीमित होने के कारण वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाते हैं। यदि संसार के नायक परमात्मा से सम्पर्क हो जाए तो हमारी शक्ति पूर्ण हो जाएगी। मन्त्रों की साधना से साधक का आराध्य से साक्षात्कार हो जाता है, जिससे देवता साधक पर प्रसन्न होकर क्लेशनिवारण और मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं व सांसारिक सुखों और पुरुषार्थ को प्रदान करते हैं। इसी को ‘मन्त्रसिद्धि’ कहते हैं।

ऋग्वेद, (१०।१२५।३) में आदिशक्ति का कथन है–‘मैं ही निखिल ब्रह्माण्ड की ईश्वरी हूँ, उपासकगण को धन आदि इष्टफल देती हूँ। मैं सर्वदा सबको ईक्षण (देखती) करती हूँ, उपास्य देवताओं में मैं ही प्रधान हूँ, मैं ही सर्वत्र सब जीवदेह में विराजमान हूँ, अनन्त ब्रह्माण्डवासी देवतागण जहां कहीं रहकर जो कुछ करते हैं, वे सब मेरी ही आराधना करते हैं।’

‘कलौ चण्डीविनायकौ’ के अनुसार कलियुग में देवी दुर्गा की आराधना तत्काल फल देने वाली बताई गयी है। भगवती दुर्गा की यह उपासना उनके मूलमन्त्र (नवार्ण मन्त्र) के जप और देवी की वांग्मयी मूर्ति (श्रीदुर्गासप्तशती) के पाठ-हवन आदि करने पर शीघ्र ही सिद्धिप्रद होती है।

श्रीदुर्गा का नवार्ण/नवाक्षर मन्त्र

देवी दुर्गा मूलप्रकृतिरूपिणी, सभी प्राणियों की जननी, मनुष्यों की बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी व वैष्णवों व शैवों की उपास्या हैं। वे घोर संकट से रक्षा करती हैं, अत: जगत में ‘दुर्गा’ नाम से जानी जाती हैं। आदिशक्ति दुर्गा का मूल मन्त्र नवार्ण मन्त्र है तथा बीज मन्त्र के रूप में प्रसिद्ध है। नौ वर्णों से बना होने के कारण इसे ‘नवाक्षर या नवार्ण मन्त्र’ कहते हैं।

इसका स्वरूप है–’ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।’

नवार्ण मन्त्र में तीन बीज मन्त्र

मां दुर्गा के तीन चरित्र हैं। प्रथम चरित्र में दुर्गा का महाकाली रूप है। मध्यम चरित्र में महालक्ष्मी तथा उत्तर चरित्र में वह महासरस्वती हैं। इन तीन चरित्रों से बीज वर्णों को चुनकर नवार्ण मन्त्र का निर्माण हुआ है। नवार्ण मन्त्र में तीन बीज मन्त्र हैं–

‘ऐं’–यह सरस्वती बीज है। ‘ऐ’ का अर्थ सरस्वती है और ‘बिन्दु’ का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् सरस्वती हमारे दु:ख को दूर करें।

‘ह्रीं’–भुवनेश्वरी बीज है और महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है।

‘क्लीं’–यह कृष्णबीज, कालीबीज एवं कामबीज माना गया है।

नवार्ण मन्त्र का भावार्थ

‘हे चित्स्वरूपिणी महासरस्वती! हे सद्रूपिणी महालक्ष्मी! हे आनन्दरूपिणी महाकाली! ब्रह्मविद्या पाने के लिए हम हर समय तुम्हारा ध्यान करते हैं। हे महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीस्वरूपिणी चण्डिके! तुम्हे नमस्कार है। अविद्यारूपी रज्जु की दृढ़ ग्रन्थि खोलकर मुझे मुक्त करो।’

सरल शब्दों में–महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नामक तीन रूपों में सच्चिदानन्दमयी आदिशक्ति योगमाया को हम अविद्या (मन की चंचलता और विक्षेप) दूरकर प्राप्त करें।

मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता, शक्तियां एवं विनियोग

ब्रह्मा, विष्णु और शिव इस मन्त्र के ऋषि कहे गए हैं। गायत्री, उष्णिक और अनुष्टुप्–ये तीनों इस मन्त्र के छन्द हैं। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती–इस मन्त्र की देवता हैं। रक्तदन्तिका, दुर्गा तथा भ्रामरी–इस मन्त्र के बीज हैं। नन्दा, शाकम्भरी और भीमा–ये इस मन्त्र की शक्तियां कही गयी हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का विनियोग किया जाता है।

नवार्ण मन्त्र के जप का फल

नमामि त्वां महादेवीं महाभयविनाशिनीम्।
महादुर्गप्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम्।। (श्रीदेव्यथर्वशीर्षम्)

अर्थात्–महाभय का नाश करने वाली, महासंकट को शान्त करने वाली और महान करुणा की मूर्ति तुम महादेवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

यह मन्त्र मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष के समान है। नवार्णमन्त्र ▪️उपासकों को आनन्द और ब्रह्मसायुज्य देने वाला है। दुर्गा के तीन चरित्रों में ▪️महाकाली की आराधना से माया-मोह एवं वितृष्णा का नाश होता है।

▪️महालक्ष्मी सभी प्रकार के वैभवों से परिपूर्ण कर बुराई से लड़ने की शक्ति देती हैं तथा ▪️महासरस्वती किसी भी संकट से जूझकर पार उतरने वाली बुद्धि और विद्या प्रदान करती हैं। तीन चरित्रों के लिए प्रतिदिन एक-एक माला अर्थात् प्रतिदिन तीन माला इस बीज मन्त्र का जाप करने से मनुष्य के सारे विघ्नों का नाश हो जाता है तथा उसे मानसिक एवं शारीरिक शक्ति की प्राप्ति होती है। अत: नवार्ण मन्त्र के जाप करने से ही मां दुर्गा के तीनों स्वरूपों को प्रसन्न कर मनोवांछित फल प्राप्त किए जा सकते हैं।

नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की ▪️नौ शक्तियां समायी हुई है, जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है। नवार्ण मन्त्र के जप और मां दुर्गा की आराधना से ▪️सभी अनिष्ट ग्रह शान्त हो जाते हैं और मनुष्यों की ▪️दारुण बाधाएं भी शान्त हो जाती हैं।

तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम्।
आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा।। (श्रीदुर्गासप्तशती, १३।४-५)

महर्षि मेधा राजा सुरथ से कहते हैं–’आप उन्हीं भगवती की शरण ग्रहण कीजिए। वे आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं।’ ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले राजा सुरथ ने देवी की आराधना से अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया और वैराग्यवान समाधि वैश्य को देवी ने मोक्ष प्रदान किया।

श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ के पूर्व नवार्ण मन्त्र का जप किया जाता है। देवी की उपासना करने वाले इस मन्त्र का जप नित्य अपनी इच्छानुसार (१, ७, ११, २१ माला) कर सकते हैं। नवार्ण मन्त्र का जप कमलगट्टे की माला, रुद्राक्ष, लाल चंदन और स्फटिक की माला पर किया जाता हैं। एकाग्रचित्त होकर भगवती दुर्गा के सम्मुख इस मन्त्र का जप करना चाहिए। जगद्धात्री दुर्गा इससे बहुत शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

इस मन्त्र के धीमे और सस्वर जप के साथ दुर्गा के तीनों स्वरूपों के ध्यान करने का भी नियम है। अर्थात् जब महाकाली के लिए जाप करें तो महाकाली का स्वरूप, महालक्ष्मी के लिए जाप करें तो महालक्ष्मी का स्वरूप और महासरस्वती के लिए जाप करें तो महासरस्वती के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।

महाकाली के स्वरूप का ध्यान

खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघांशूलं भुशुण्डीं शिर:
शंखं  संदधतीं  करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्।।

अर्थात्–कामबीजस्वरूपिणी महाकाली का ध्यान इस प्रकार है–भगवान विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ को मारने के लिए कमलजन्मा ब्रह्माजी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मैं ध्यान करता हूँ। वे अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डी, कपाल और शंख धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। उनके समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों विभूषित हैं तथा उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं।

महालक्ष्मी के स्वरूप का ध्यान

ॐ अक्षस्त्रक्परशुं  गदेषुकुलिशं पद्मं धनु: कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्।।

अर्थात्–मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्नमुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढाल, शंख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं। ये अरुण प्रभावाली हैं, रक्तकमल के आसन पर विराजमान मायाबीजस्वरूपिणी महालक्ष्मी मैं का ध्यान करता हूँ।

महासरस्वती के स्वरूप का ध्यान

ॐ घण्टाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनु: सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्
गौरीदेहसमुद्धवां त्रिजगतामाधारभूतां महा
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्।।

अर्थात्–जो अपने करकमलों में घण्टा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, शरद् ऋतु के शोभासम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है उन वाणीबीजस्वरूपिणी महासरस्वती देवी का मैं निरन्तर भजन करता हूँ।

पराम्बा आदिशक्ति द्वारा त्रिदेवों को नवार्ण मन्त्र का जप करने का निर्देश

देवी जगदम्बिका ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश से कहा–‘आप इस मन्त्र को सभी मन्त्रों से श्रेष्ठ जानिए। बीज और ध्यान से युक्त मेरे इस नवाक्षर मन्त्र का जप समस्त भय दूर कर देगा। मेरे द्वारा दिया गया वाग्बीज (ऐं), कामबीज (क्लीं) तथा मायाबीज (ह्रीं) इनसे युक्त यह मन्त्र परमार्थ प्रदान करने वाला है। आप इसका निरन्तर जप कीजिए, ऐसा करने से न तो मृत्युभय होगा और न काल का डर सताएगा।’

पराम्बा आदिशक्ति ने ब्रह्मा को महासरस्वती, विष्णु को महालक्ष्मी तथा शिव को महाकाली (गौरी) देवियों को देकर ब्रह्मलोक, विष्णुलोक तथा कैलास जाकर अपने-अपने कार्यों का पालन करने को कहा।

आदिशक्ति देवी भगवती मनुष्य की इच्छा से अधिक फल प्रदान करने की सामर्थ्य से युक्त हैं। ऋग्वेद (१०।१२५।५) में देवी कहती हैं–’मैं जिस-जिसको चाहती हूँ, उस-उसको श्रेष्ठ बना देती हूँ। उसे ब्रह्मा, ऋषि या अत्यन्त प्रभावशाली मनुष्य बना देती हूँ।’

आदिशक्ति अम्बे! इस जग का सारा शोक विदारें।
दया करें सब पर अनुदिन ही, सबकी दशा संवारें।।
मानव के मन में स्थित जो काम, शोक, भय भारी।
परम कृपा करि उन्हें मिटा दें, जननी देव दुलारी।। (डॉ. श्रीश्यामबिहारी मिश्र)

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