कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।

शास्त्रों में पूजा के पांच प्रकार बतलाए गए हैं–अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय और इज्या। भगवान के स्थान को साफ करना, पोंछा लगाना, निर्माल्य (चढ़ी हुई पूजा सामग्री) को हटाना, आदि को ‘अभिगमन’ कहते हैं। पूजा के चंदन, पुष्प आदि सामग्री तैयार करना ‘उपादान’ है। इष्टदेव की आत्मरूप से भावना करना ‘योग’ है। मन्त्र-जप, स्तोत्र पाठ, कीर्तन और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन आदि ‘स्वाध्याय’ है। विभिन्न उपचारों (वस्तुओं) से अपने आराध्य की पूजा ‘इज्या’ है।

इस ब्लॉग में शिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव के षोडशोपचार अर्थात् सोलह उपचारों से पूजा की सामग्री व विधि का वर्णन किया जा रहा है। अपने समय, स्वास्थ्य व सामर्थ्य के अनुसार जैसे भी बने, पूजा की जा सकती है। भगवान सदाशिव की पूजा जहां एक ओर राजसी उपचारों व वैभव से की जाती है; वहीं दूसरी ओर वह केवल जल, अक्षत, बिल्वपत्र और मुखवाद्य (मुख से बम-बम भोले की ध्वनि) से ही पूरी हो जाती है। शिवजी की प्रसन्नता के लिए गाल बजाना भी श्रेष्ठ माना गया है; इसीलिए वे ‘आशुतोष’ कहे जाते हैं।

शिवपूजन की सामग्री

जल, दूध, दही, घी, शहद, शर्करा, ईख का रस (विशेष जलधारा के लिए), गंगाजल, चंदन (कपूर और केसर युक्त), लाल चंदन, रोली, अक्षत (अखण्ड चावल), इत्र, नाना परिमल द्रव्य–अबीर-गुलाल, काले तिल, यज्ञोपवीत, वस्त्र (वस्त्र में सफेद धोती व उत्तरीय के लिए अंगोछा होता है। यदि इतना न कर सकें तो वस्त्र की भावना से कलावा चढ़ा सकते हैं।), दूर्वा, बेलपत्र, बेलफल, शमीपत्र, तुलसीदल व मंजरी, भस्म, पुष्प, श्वेत आक के पुष्प, पुष्पमाला, धतूरा, धूप, दीपक, कपूर, आरती, नैवेद्य (मिठाई), पंचमेवा, ऋतुफल, पान, लोंग, इलायची, सुपारी, रुद्राक्षमाला, दक्षिणा, जल के लिए लोटा, अर्घ्य के लिए पात्र, श्रीफल, आचमनी।

इन सब वस्तुओं के अभाव में केवल जल व बिल्वपत्र समर्पित करने से भी शिव की पूजा सफल होती है।

शिवपूजन की विधि

भगवान शंकर की पूजा के लिए पहले स्नान करने के बाद भस्म व रुद्राक्ष धारण करलें। शिवपूजा में धुले व श्वेत वस्त्र अच्छे माने जाते हैं। शिवपूजन शिवमन्दिर में जाकर अथवा घर पर ही यदि नर्मदेश्वर शिवलिंग हों तो उनका पूजन किया जा सकता है।

भगवान शिव के मन्दिर में शुद्ध मन से प्रवेश करने के बाद श्रीविग्रह पर चढ़े हुए निर्माल्य को हटाएं। भगवान शिव के मन्दिर में जो मार्जन (साफ सफाई) का कार्य करते हैं, भगवान शंकर भी उसके हृदय का मार्जन कर देते हैं। शिवपूजा उत्तर की ओर मुख करके आसन पर बैठकर करना शुभ होता है।

पूजा शुरु करने से पहले रक्षादीप जलाकर प्रार्थना करें–’हे दीप! आप मेरे इष्टदेव को प्रिय हैं, कर्मों के साक्षी है, सुख-समृद्धि को देने वाले हैं, जब तक मेरी पूजा चले, तब तक आप यहां सुस्थिर रहें।’ धूप भी जला दें।
पूजन से पहले हाथ में पुष्प, अक्षत व जल लेकर संकल्प करें–’हे देव ! मैं आपका शिवरात्रि-व्रत पूजन करना चाहता हूँ, आपकी कृपा से यह निर्विघ्न पूर्ण हो।’

इसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती को नमस्कार करें–

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्।।

भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए पहले उनके परिवार–गणपति, गौरी, कार्तिकेय व नन्दीश्वर का पूजन  करें।
–शिव पूजन के लिए सबसे पहले हाथ में बिल्वपत्र व अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें–भगवान शिव अपनी वामा और ज्येष्ठा शक्तियों से संयुक्त हैं। उनके पांच मुख और दस भुजाएं हैं, प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र हैं। शुद्ध स्फटिक के समान उनकी उज्जवल कान्ति है। वे व्याघ्रचर्म की चादर ओढ़े हुए हैं। मस्तक पर चन्द्रकला और गंगा तथा वामांग में गिरिराजनन्दिनी विराजमान हैं। सिद्धगण उनकी स्तुति कर रहे हैं। ध्यान करके हाथ का बिल्वपत्र और अक्षत शिवलिंग पर चढ़ा दें।
–ध्यान के बाद शंकरजी को सबसे पहले आसन समर्पित करें। आसन के लिए शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाएं।
शिव पूजन करते समय सभी द्रव्य या तो भावना से या पंचाक्षर मन्त्र का उच्चारण करते हुए या जो भी द्रव्य अर्पित करें उसका नाम बोलते हुए चढ़ाएं जैसे–साम्बसदाशिवाय नम: आसनं समर्पयामि।
पाद्य (पैर धुलाने के लिए के लिए शिवलिंग पर जल) छोड़ें।
–फिर अर्घ्य (हाथ धुलाने के लिए जल) निवेदित करें। (जल में चंदन, अक्षत व पुष्प मिलाकर अर्घ्यजल बनाया जाता है।
–इसके बाद भगवान शंकर को आचमन के लिए जल चढ़ाएं।
–तत्पश्चात् आर्द्रचित्त हो पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए शिवजी को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
दूध, दही, घी, शहद व शर्करा से शिवजी को अलग-अलग स्नान कराएं। फिर शुद्ध जल से स्नान कराकर अंत में पंचामृत से स्नान कराएं। पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं।
–थोड़े से जल में चंदन मिलाकर गन्धोदक स्नान कराएं।
–पुन: गंगाजल से स्नान कराकर अंत में शुद्धजल से स्नान कराएं और स्नान के बाद आचमन के लिए जल छोड़ दें।
–शिवलिंग को साफ वस्त्र से पोंछकर वस्त्र चढ़ाकर आचमन कराएं।
यज्ञोपवीत समर्पित करके आचमन कराएं।
–शिवलिंग पर उपवस्त्र चढाकर आचमन के लिए जल छोड़ दें।
–शिवलिंग पर सुगन्धित चंदन से त्रिपुण्ड्र बनाएं, लाल चंदन से त्रिपुण्ड के बीच में बिन्दी लगाएं। शिव मन्त्रों के साथ भगवान पर अखण्ड चावलकाले तिल आदि चढ़ाएं। अबीर-गुलाल छिड़कें व इत्र का लेपन करें।
–पंचानन भगवान शिव को पुष्पमाला, पुष्प, दूर्वा, ‘ऊँ नम: शिवाय’ या ‘राम’ लिखे बिल्वपत्र चढ़ाएं। इसके बाद बेलफल, धतूरा, शमीपत्र, तुलसीदल आदि अर्पित करें। शिवजी पर कमल, गुलाब, चम्पा, चमेली, सफेद कनेर, बेला, अपामार्ग, उत्पल आदि पुष्प चढ़ाने चाहिए।
–भगवान शिव को आभूषण की जगह रुद्राक्षमाला धारण कराएं।
–भगवान शिव को गुग्गुल और अगरु की धूप निवेदन करें। फिर घी से बरा हुआ दीपक दिखाएं।
–इसके बाद भगवान शिव को नैवेद्य में मिष्ठान व ऋतुफल अर्पित करें फिर भगवान को प्रेमपूर्वक आचमन करायें। (कुछ लोग भगवान को भांग का भोग लगाते हैं।)
करोद्वर्तन के लिए दोनों हाथों की अनामिका ऊंगलियों में चंदन लेकर अंगूठे की सहायता से शिवलिंग पर छिड़कें।
–लोंग, इलायची, सुपारी द्वारा निर्मित ताम्बूल भगवान शिव को निवेदित करें।
–अंत में सामर्थ्यानुसार द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।
–पूजन के बाद भगवान शिव को अर्घ्य निवेदन करें–’हे शंकर! जल, अक्षत, फूल और श्रीफल से युक्त यह अर्घ्य ग्रहण कीजिए, पूजा की पूर्ति के लिए मैं इसे समर्पित करता हूँ।’

अर्घ्य मन्त्र

रूपं देहि यशो देहि भोगं देहि च शंकर।
भुक्तिमुक्तिफलं देहि गृहीत्वार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।

‘प्रभो शंकर! आपको नमस्कार है। आप इस अर्घ्य को स्वीकार करके मुझे रूप दीजिए, यश दीजिए, भोग दीजिए तथा भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान कीजिए।’
–त्रिशूलधारी भगवान शिव की आरती के दर्शन से मनुष्य समस्त पातकों से मुक्त हो जाता है, फिर जो स्वयं ही भगवान की आरती करता है, उसके लिए तो कहना ही क्या है? भगवान शिव की कपूर व दीपक से आरती भगवान के पैरों में चार बार, नाभि के सामने दो बार, मुख के समक्ष एक बार और सभी अंगों में सात बार करें।
–भगवान शिव के आठ नाम-मन्त्रों–भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान–से पुष्पांजलि अर्पित करें।
–भगवान शिव के समीप नृत्य, गीत तथा वाद्य बजाकर व शिव स्तोत्र के पाठ द्वारा महादेवजी की स्तुति करने का फल अनन्त होता है।
–महादेवजी की आधी परिक्रमा कर साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करें।
–अंत में भाव-विभोर होकर देवेश्वर शिव से अपने अपराधों के लिए क्षमा-प्रार्थना करते हुए कहें–’भगवन्! मुझसे जो सुकृत अथवा दुष्कृत हुआ है, उसके लिए आप क्षमा करें। शंकर! मैंने अज्ञान से या जानबूझकर जो पूजन किया है, वह आपकी कृपा से सफल हो। मृड! मैं आपका हूँ, मेरे प्राण सदा आपमें लगे हुए हैं, मेरा चित्त सदा आपका ही चिन्तन करता है–ऐसा जानकर हे गौरीनाथ ! आप मुझपर प्रसन्न होइए। धरती पर जिनके पैर लड़खड़ा जाते हैं, उनके लिए भूमि ही सहारा है; उसी प्रकार जिन्होंने आपके प्रति अपराध किए हैं उनके लिए भी आप ही शरणदाता हैं।’

शिवे भक्ति: शिवे भक्ति: शिवे भक्तिर्भवे भवे।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।।

अर्थात्–’प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो। शिव के सिवा दूसरा कोई मुझे शरण देने वाला नहीं। महादेव! आप ही मेरे लिए शरणदाता हैं।’

प्रार्थना करने के बाद मुखवाद्य (गाल बजाकर बम-बम भोले) से समस्त सिद्धियों के दाता भगवान शंकर को नमस्कार करें। ऐसा करने से मनुष्य उत्तम वक्ता होता है।

–अंत में पूजनकर्म शिवार्पण करते हुए जल को पृथ्वी पर छोड़कर हृदय से लगा लें।

शिव पूजा का फल

रोग, दु:ख, दरिद्रता, शत्रुपीड़ा, दूसरों से होने वाले उद्वेग, कुटिलता तथा विष आदि से जो कष्ट होते हैं, भगवान शिव की कृपा से वे सब नष्ट हो जाते हैं। शिवजी की पूजा संतान सुख भी देने वाली है। इससे उपासक में सद्गुणों की वृद्धि होती है। इस विधि से भगवान शंकर का पूजन करने से मनुष्य अपनी तीन पीढ़ी का उद्धार करके शिवलोक में जाता है। परन्तु यह पूजन तभी सफल होता है जब मनुष्य सदाचार में स्थित रहकर भगवान शिव की पूजा करता है।

विशेष शिवार्चन

महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शंकर की विशेष उपासना के लिए पंचाक्षर मन्त्र का जप, गन्ने के रस से रुद्राभिषेक, जलधारा से रुद्राभिषेक तथा १०८ पुष्प, १०८ कमल, १०८ बेलपत्र, १०८ अखण्ड चावल, आदि से शिवपूजन किया जाता है। विशेष पूजन में श्रीशिवसहस्त्रनाम द्वारा बिल्वपत्र या पुष्प आदि से पूजन किया जाता है। शिवरात्रि पर्व में उपवास व रात्रि-जागरण का भी विशेष महत्व है। स्कन्दपुराण के अनुसार इस प्रकार शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता।

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