किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।
यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।। (स्कन्दपुराण)

अर्थात्–‘जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ यह मन्त्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मन्त्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!’

भगवान शिव का पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र

जैसे सभी देवताओं में त्रिपुरारि भगवान शंकर देवाधिदेव हैं, उसी प्रकार सब मन्त्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नम: शिवाय’ श्रेष्ठ है। इसी मन्त्र के आदि में प्रणव (ॐ) लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है। वेद अथवा शिवागम में षडक्षर मन्त्र स्थित है; किन्तु संसार में पंचाक्षर मन्त्र को मुख्य माना गया है।

संसारबंधन में बंधे हुए मनुष्यों के हित की कामना से स्वयं भगवान शिव ने ‘ॐ नम: शिवाय’ इस आदि मन्त्र का प्रतिपादन किया। पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र में सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान शिव सदा रमते हैं। इसे ‘पंचाक्षरी विद्या’ भी कहते हैं। यह मन्त्रराज समस्त श्रुतियों का सिरमौर, सम्पूर्ण उपनिषदों की आत्मा और शब्द समुदाय का बीजरूप है। ‘नम: शिवाय’ मन्त्र के जप से मनुष्य परमात्मा शिव में मिलकर शिवस्वरूप हो जाता है।

भगवान शिव का कथन है–यह सबसे पहले मेरे मुख से निकला; इसलिए यह मेरे ही स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला है। पंचाक्षर तथा षडक्षर मन्त्र में वाच्य-वाचक भाव के द्वारा शिव स्थित हैं। शिव वाच्य हैं और मन्त्र वाचक है। यह पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र शिववाक्य होने से सिद्ध है। इसलिए मनुष्य को नित्य पंचाक्षर मन्त्र का जप करना चाहिए।

‘यह पंचाक्षर मन्त्र मोक्षमार्ग को प्रकाशित करने वाला दीपक है। अविद्या के समुद्र को सोखने वाला वडवानल है और पापों के जंगल को जला डालने वाला दावानल है। यह पंचाक्षर मन्त्र वटवृक्ष के बीज की भांति हैं जो सब कुछ देने वाला तथा सर्वसमर्थ माना गया है।’ (स्कन्दपुराण)

भगवान शिव द्वारा ब्रह्माजी को पंचाक्षर मन्त्र का उपदेश

पूर्वकाल में भगवान शंकर ने पार्वतीजी को इस पंचाक्षर मन्त्र के बारे में बताते हुए कहा–प्रलयकाल में समस्त चराचर जगत, देवता, असुर, नाग आदि नष्ट हो जाते हैं और सभी पदार्थ प्रकृति में लीन हो जाते हैं। उस समय एकमात्र मैं ही रह जाता हूँ। उस समय सभी देवता, वेद और शास्त्र मेरी शक्ति से पंचाक्षर मन्त्र में स्थित रहते हैं। फिर जब मैं दो रूप धारण करता हूँ तब प्रकृति ही मायामय शरीर धारणकर भगवान नारायण के रूप में जल के मध्य में शेषशय्या पर शयन करती है। उनके नाभिकमल से पांच मुख वाले ब्रह्मा उत्पन्न हुए। सृष्टिरचना की इच्छा से ब्रह्मा ने दस मानस पुत्रों को उत्पन्न किया। अपने पुत्रों द्वारा सृष्टिरचना की सामर्थ्य के लिए ब्रह्मा ने मुझसे प्रार्थना की।

ब्रह्माजी की प्रार्थना पर मैंने अपने पांच मुखों (ईशान, घोर, तत्पुरुष, वामदेव और सद्योजात) से ब्रह्माजी के प्रत्येक मुख में एक-एक अक्षर के क्रम से पांच अक्षरों का उच्चारण किया। उन अक्षरों को ब्रह्माजी ने पांच मुखों से ग्रहण किया। ब्रह्माजी ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए इस पंचाक्षर मन्त्र का दीर्घकाल तक जप किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर ब्रह्माजी को पंचाक्षर मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता, शक्ति, बीज, षडंगन्यास, दिग्बन्ध व विनियोग बताए। इस मन्त्र के प्रयोग को जानकर ब्रह्मा ने अपने पुत्रों को इस मन्त्ररत्न का उपदेश दिया। ऋषिगण भी इस मन्त्र का माहात्म्य सुनकर अनुष्ठान करने लगे क्योंकि उसी के प्रभाव से देवता, असुर, धर्म, वेद और यह जगत स्थिर है।

भगवान शिव का कथन है कि प्रणव (ॐ)  सहित पांच अक्षरों से युक्त यह मन्त्र मेरा हृदय है। यही शिवज्ञान है, यही परमपद है और यही ब्रह्मविद्या है।

पंचाक्षर मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता और ध्यान

पंचाक्षर मन्त्र के ऋषि वामदेव, छन्द पंक्ति व देवता शिव हैं। आसन लगाकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके इस मन्त्र का जप करना चाहिए। रुद्राक्ष की माला से जप का अनन्तगुना फल मिलता है। स्त्री, शूद्र आदि सभी इस मन्त्र का जप कर सकते हैं। इस मन्त्र के लिए दीक्षा, होम, संस्कार, तर्पण और गुरुमुख से उपदेश की आवश्यकता नहीं है। यह मन्त्र सदा पवित्र है। इस मन्त्र का जप करने से पहले भगवान शिव का इस प्रकार ध्यान करना चाहिए–

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

अर्थ–चांदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है,  जो ललाट पर सुन्दर अर्धचन्द्र को आभूषण रूप में धारण करते हैं, रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्जवल है, जिनके हाथों में परशु तथा मृग, वर और अभय मुद्राएं हैं, पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो बाघ की खाल पहनते हैं, जो विश्व के आदि, जगत् की उत्पत्ति के बीज और समस्त भयों को हरने वाले हैं, जिनके पांच मुख और तीन नेत्र हैं, उन महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करें।

ध्यान के बाद मन्त्र का जप करना चाहिए। लिंगपुराण में कहा गया हैं कि–जो बिना भोजन किए एकाग्रचित्त होकर आजीवन इस मन्त्र का नित्य एक हजार आठ बार जप करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।

इस मन्त्र के लिए लग्न, तिथि, नक्षत्र, वार और योग का विचार नहीं किया जाता। यह मन्त्र कभी सुप्त नहीं होता, सदा जाग्रत ही रहता है। अत: पंचाक्षर मन्त्र ऐसा है जिसका अनुष्ठान सब लोग सब अवस्थाओं में कर सकते हैं।

शिवपुराण में भगवान शिव कहते है–‘जिसकी जैसी समझ हो, जिसे जितना समय मिल सके, जिसकी जैसी बुद्धि, शक्ति, सम्पत्ति, उत्साह, योग्यता और प्रेम हो, उसके अनुसार वह जब कभी, जहां कहीं अथवा जिस किसी भी साधन द्वारा मेरी पूजा कर सकता है। उसकी की हुई वह पूजा उसे अवश्य मोक्ष की प्राप्ति करा देगी।’

पंचाक्षर मन्त्र की महिमा

पंचाक्षर मन्त्र अल्पाक्षर एवं अति सूक्ष्म है किन्तु इसमें अनेक अर्थ भरे हैं।

–यह सबसे पहला मन्त्र है।
–यह मन्त्र भगवान शिवजी का हृदय–शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़ और मोक्ष ज्ञान देने वाला है।
–यह मन्त्र समस्त वेदों का सार है।
–यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों को आनन्द प्रदान करने वाला और मन को निर्मल करने वाला है।
–पंचाक्षर मन्त्र  मुक्तिप्रद–मोक्ष देने वाला है।
–यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है।
–पंचाक्षर मन्त्र नाना प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
–इस मन्त्र के जाप से साधक को लौकिक, पारलौकिक सुख, इच्छित फल एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।
–यह मन्त्र मुख से उच्चारण करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं का बीजस्वरूप है।
–यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्, पुराण और शास्त्रों का आभूषण व सब पापों का नाश करने वाला है।
‘शिव’ यह दो अक्षरों का मन्त्र ही बड़े-बड़े पातकों का नाश करने में समर्थ है और उसमें नम: पद जोड़ दिया जाए, तब तो वह मोक्ष देने वाला हो जाता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र शिवस्वरूप है–

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’काराय नम: शिवाय।।
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै ‘म’काराय नम: शिवाय।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’काराय नम: शिवाय।।
वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’काराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’काराय नम: शिवाय।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

अर्थ–’जिनके कण्ठ में सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म जिनका अंगराग है और दिशाएं ही जिनका वस्त्र है (अर्थात् जो नग्न है), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति, प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर ‘म’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो कल्याणरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ ‘शि’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव ‘य’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।

विभिन्न कामनाओं के लिए पंचाक्षर मन्त्र का प्रयोग

विभिन्न कामनाओं के लिए गुरु से मन्त्रज्ञान प्राप्त करके नित्य इसका ससंकल्प जप करना चाहिए और पुरश्चरण भी करना चाहिए।

–दीर्घायु चाहने वाला गंगा आदि नदियों पर पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करे व दुर्वांकुरों, तिल व गिलोय का दस हजार हवन करे।
–अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए शनिवार को पीपलवृक्ष का स्पर्श करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
–चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय एकाग्रचित्त होकर महादेवजी के समीप दस हजार जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
–विद्या और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अंजलि में जल लेकर शिव का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
–एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
–प्रतिदिन एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से सभी उदर रोगों का नाश हो जाता है।
–भोजन से पूर्व ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान हो जाता है।
–रोग शान्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।

‘शिव’ नामरूपी मणि जिसके कण्ठ में सदा विराजमान रहती है, वह नीलकण्ठ का ही स्वरूप बन जाता है। शिव नाम रूपी कुल्हाड़ी से संसाररूपी वृक्ष जब एक बार कट जाता है तो वह फिर दोबारा नहीं जमता। भगवान शंकर पार्वतीजी से कहते हैं कि कलिकाल में मेरी पंचाक्षरी विद्या का आश्रय लेने से मनुष्य संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है। मैंने बारम्बार प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही है कि यदि पतित, निर्दयी, कुटिल, पातकी मनुष्य भी मुझमें मन लगा कर मेरे पंचाक्षर मन्त्र का जप करेंगे तो वह उनको संसार-भय से तारने वाला होगा।

भगवान शिव हैं बड़े ‘आशुतोष’। उपासना करने वालों पर वे बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं फिर जो निष्कामभाव से प्रेमपूर्वक उनको भजते हैं, उनका तो कहना ही क्या? तुलसीदासजी ने कहा है–

भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।