Radha Krishna, Shree Radha, Shree Krishna
एक स्वरूप दो जान श्रीराधाकृष्ण

श्रीराधे बृषभानुजा भक्तनि प्राणाधार ,
वृन्दाविपिन विहारिणी प्रणवों बारम्बार।

जैसो तैसो रावरो कृष्णप्रिया सुख धाम,
चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम।।

आज श्रीराधाष्टमी महोत्सव है अतएव श्रीराधा का स्मरण करके अपने जीवन को धन्य बनाएं । श्रीराधा की प्रेरणा से ही मैं श्रीराधातत्व और श्रीराधास्वरूप पर कुछ लिखने का साहस कर रही हूँ ।

श्रीराधाजी का प्राकट्य भाद्रपदमास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्याह्न काल में अभिजित् मुहूर्त और अनुराधा नक्षत्र के योग में बरसाना में राजा बृषभानु और रानी कीर्तिदा के घर हुआ । श्रीराधा जगत की रचना करने वाली, पालन करने वाली और प्रलय के समय संहार करने वाली हैं । श्रीकृष्ण इनकी आराधना करते हैं इसलिए ये राधा हैं और ये सदा श्रीकृष्ण की समाराधना करती हैं इसलिए ‘राधिका’ कहलाती हैं।

कृष्णेन आराध्यत इति राधा, कृष्णं समाराध्यति सदेति राधिका ।

भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा निश्चय ही श्रीराधिका हैं । श्रीराधा और श्रीकृष्ण का देह एक है केवल लीला के लिए ही वे दो स्वरूपों में प्रकट हैं । श्रीकृष्णजी ने कहा है जो मेरी शरण में आ गया पर मेरी प्रिया की शरण में नहीं आया वह मुझको प्राप्त नही होगा । इसीलिए श्रीराधा की प्रसन्नता के लिए उनके प्रियतम श्रीकृष्ण की अनन्यशरण होकर उनकी आराधना करनी चाहिए । मतलब यह है कि युगलस्वरूप की आराधना करनी चाहिए । इसदिन श्रीकृष्ण और श्रीराधा की उपासना मध्याह्नकाल (दोपहर) में गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवैद्य से करें ।  एक बार सात्विक भोजन करें । इस व्रत को करने से मनुष्य राधाजी के सांनिध्य में वृन्दावन में वास करता है ।
‘राधा’ नाम के पहले अक्षर ‘र’ का उच्चारण करते ही करोड़ों जन्मों के संचित पाप और शुभ अशुभ कर्मों के भोग नष्ट हो जाते हैं । आकार (।) के उच्चारण से जन्म, मृत्यु और रोग छूट जाते हैं । ‘ध’ के उच्चारण से आयु की वृद्धि होती है और आकार के उच्चारण से जीव भव बंधन से छूट जाता है ।
श्रीराधा के प्रसिद्ध सोलह नाम पुराणों में आते हैं–राधा, रासेस्वरि, रासवासिनी, रसिकेस्वरि, कृष्णप्राणाधिका, कृष्णप्रिया, कृष्णस्वरूपिणी, कृष्णा, परमानन्दरूपिणी, कृष्णवामांगसम्भूता, वृन्दावनी, वृन्दा, वृन्दावनविनोदिनी, चन्द्रावली, चन्द्रकान्ता और शरतचन्द्रप्रभानना ।
अत: इस राधाष्टमी के पावन अवसर पर हम सब श्रीबृषभानुदुलारी, कीर्तिदाकुमारी के पावन चरणों में श्रद्धाभक्तिपूर्वक प्रणामकर उनसे उनके पवित्र प्रेम की भिक्षा मांगते हैं ।

वन्दे वृन्दावनानन्दां राधिकां परमेश्वरीम्, गोपिकां परमां श्रेष्ठां ह्लादिनीं शक्तिरूपिणीम् ।
राधा मेरी स्वामिनी मैं राधेजू को दास, जन्म जन्म मोहि दीजियो युगल चरण में वास ।
सब द्वारन कू छोड़ के आयी तेरे द्वार, श्रीबृषभानु की लाड़ली मेरी ओर निहार ।
वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय, डाल डाल और पात पात पर राधे ही राधे होय ।
श्रीबृषभानुदुलारी के पद वन्दऊँ कर जोरि, जिनकी कृपा कटाक्ष से सुख उपजत चहुँ ओर ।।

राधाष्टमी पर्व पर व्रज (मथुरा, वृन्दावन) में बनने वाला विशेष व्यंजन दही अरबी

सामग्री

  • आधा किलो अरबी,
  • दो कप दही,
  • एक चाय का चम्मच
  • पिसी काली मिर्च,
  • एक चाय का चम्मच गरम मसाला,
  • एक चाय का चम्मच अजवाइन,
  • नमक स्वादानुसार,
  • तलने के लिये घी या तेल ।

विधि

अरबी धोकर छील लें। कांटे की सहायता से अरबी को गोंद लें । कड़ाही में इतना तेल गरम करें कि अरबी डूब जाएं । धीमी आंच पर तब तक तलें जब तक कि अरबी गल जाएं । फिर उन्हें पेपर नेपकिन पर निकाल लें ताकि अतिरिक्त तेल निकल जाए । एक दूसरी कड़ाही में दो बड़े चम्मच तेल डालें । तेल गरम होने पर अजवाइन डालें । अरबी डालकर भूनें । एक बाउल में दही, नमक, कालीमिर्च व गरम मसाला फेंट लें । अब यह दही का मिश्रण अरबी पर डाल दें और तब तक भूनें जब तक कि दही सूख जाये । अंत में कटा धनिया डालकर सर्व करें ।

Arbi, recipie

3 COMMENTS

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